________________
संतुष्टि - जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। यदि प्रत्येक व्यक्ति इतना हताश दिखाई देता है तो कारण यही है कि कोई अपनी भीतर की आवाज को नहीं सुन रहा है।
तुम किसी लड़की से शादी करना चाहते थे, लेकिन वह लड़की मुसलमान थी और तुम हिंदू ब्राह्मण हो। तुम्हारे माता-पिता ने इजाजत नहीं दी समाज स्वीकार नहीं करेगा; यह बात खतरनाक थी। लड़की गरीब थी और तुम अमीर हो तो तुमने विवाह कर लिया किसी अमीर स्त्री से, हिंदू ब्राह्मण स्त्री से, जो स्वीकार किया गया सब के द्वारा लेकिन तुम्हारे हृदय द्वारा नहीं तो अब तुम एक असुंदर जीवन जीते हो। अब तुम किसी वेश्या के पास जाते हो लेकिन वेश्याएं भी तुम्हारे काम न आएंगी। तुमने बेकार गंवाया अपना पूरा जीवन तुमने व्यर्थ किया अपना पूरा जीवन ।
सदा भीतर की आवाज को ही सुनना, और किसी बात को मत सुनना। हजारों प्रलोभन हैं तुम्हारे चारों ओर, क्योंकि हु से लोग अपनी- अपनी चीजों को बेच रहे हैं। एक बड़ा बाजार है यह संसार और हर किसी को अपनी चीज तुम्हें बेच देने में रुचि है, हर कोई सेल्समैन है। यदि तुम बहुत से सेल्समैनों की बातें सुनते हो तो तुम पागल हो जाओगे किसी की मत सुनो, अपनी आंखें बंद कर लो और भीतर की आवाज को सुनो। यही है ध्यान. भीतर की आवाज को सुनना। यह पहली बात है।
-
फिर दूसरी बात - यदि तुमने पहली बात पूरी कर ली है, केवल तभी दूसरी संभव है कोई मुखौटा कभी मत ओढो। यदि तुम क्रोधित हो, तो क्रोधित हो खतरा है इसमें, तो भी मुस्कुराओ मत, क्योंकि वह झूठ हो जाना है।
लेकिन तुम्हें सिखाया गया है कि जब क्रोध आए तो मुस्कुराओ तब तुम्हारी मुस्कुराहट झूठी हो जाती है, एक मुखौटा हो जाती है। मात्र एक व्यायाम ओंठों का, और कुछ भी नहीं। हृदय तो क्रोध से भरा है, विषाक्त है और ओंठ मुस्कुरा रहे हैं - तुम एक नकली आदमी हो जाते हो।
-
फिर एक दूसरी बात भी होती है : जब तुम सच में मुस्कुराना चाहते हो, तब भी तुम मुस्कुरा नहीं सकते। तुम्हारा सारा भीतरी ढांचा उलट-पुलट हो जाता है क्योंकि जब तुम क्रोधित होना चाहते थे तो न हुए; जब तुम घृणा करना चाहते थे तो तुमने न की । अब तुम प्रेम करना चाहते हो, तो अचानक पाते हो कि भीतरी रचना तंत्र काम ही नहीं करता। अब तुम मुस्कुराना चाहते हो, तो तुम्हें तुम जबरदस्ती मुस्कुराना पड़ता है तुम्हारा हृदय हंसी से भरा हुआ है और तुम जोर से हंसना चाहते हो, लेकिन तुम हंस नहीं सकते। कोई चीज हृदय में घुटने लगती है, गले में कुछ फंसने लगता है। मुस्कुराहट आती ही नहीं, और यदि आ भी जाए तो वह बड़ी दबी दबी और मरियल सी मुस्कुराहट होती है। वह तुम्हें आंदोलित नहीं करती। तुम जोर से खिलखिलाते नहीं। वह तुमसे एक आभा की तरह विकीरित नहीं होती।
इसलिए जब तुम क्रोधित होना चाहो, तो हो जाना क्रोधित। कुछ गलत नहीं है क्रोधित होने में। यदि तुम हंसना चाहते हो, तो हंसना कुछ बुराई नहीं है जोर से हंसने में धीरे-धीरे तुम पाओगे कि