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तुम्हारा पूरा शरीर, भीतर की पूरी व्यवस्था बिना अवरोध के काम कर रही है। जब वह ठीक से काम करती है तो उसके आस-पास एक गुनगुनाहट होती है। जैसे कि कार में जब हर चीज ठीक काम कर रही होती है, तो एक गुनगुनाहट होती है। जो ड्राइवर कार से प्रेमपूर्वक परिचित होता है वह जानता है कि अब हर चीज ठीक काम कर रही है; एक तालमेल है, यंत्र-व्यवस्था ठीक से काम कर रही है।
तुम जान सकते हो; जब भी किसी व्यक्ति का रचना-तंत्र ठीक काम कर रहा होता है, तब तुम उसके चारों ओर की गुनगुनाहट को सुन सकते हो। वह चलता है, लेकिन उसके चलने में एक नृत्य होता है। वह बोलता है, लेकिन उसके शब्दों में एक काव्य होता है। वह देखता है तुम्हारी ओर, और वह सच में देखता है; उसका देखना कुनकुना–कुनकुना नहीं होता, ऊष्मापूर्ण होता है। जब वह छूता है तुम्हें, तो सचमुच छूता है तुम्हें। तुम अनुभव कर सकते हो उसकी ऊर्जा को अपने शरीर में प्रवाहित होते हुए; एक जीवन-तरंग तुम्हें छू रही होती है। क्योंकि उसकी भीतरी रचना ठीक-ठीक काम कर रही होती
तो मुखौटे मत ओढ़ना; अन्यथा तुम विकृतियां निर्मित कर लोगे अपनी संरचना में-ग्रंथियां निर्मित कर लोगे। तुम्हारे शरीर में बहुत सी ग्रंथियां हैं। जो व्यक्ति क्रोध का दमन करता है, उसके मसूढे सख्त हो जाते हैं। सारा क्रोध मसूढ़ों में इकट्ठा हो जाता है। उसके हाथ कुरूप हो जाते हैं। उनमें किसी नृत्यकार जैसी लोचपूर्ण भंगिमा नहीं होती। नहीं हो सकती, क्योंकि क्रोध अंगुलियों में इकट्ठा हो जाता है। ध्यान रहे, क्रोध के निकलने के दो स्थल हैं। एक है दात, दूसरा है अंगुलियां : क्योंकि सारे जानवर जब क्रोधित होते हैं तो वे तुम्हें कांटते हैं दांतों से या वे तुम्हें चीरना-फाड़ना शुरू कर देते हैं हाथों से। तो नाखून और दात दो स्थल हैं जहां से कि क्रोध निकलता है।
मेरा अपना खयाल है कि जहां भी क्रोध को बहुत ज्यादा दबाया जाता है, वहा लोगों को दांतों की तकलीफ होती है, उनके दात खराब हो जाते हैं। क्योंकि बहुत ज्यादा ऊर्जा होती है और कभी
निकलती नहीं। और जो भी क्रोध को दबाता है, वह खाएगा ज्यादा, क्रोधित व्यक्ति सदा ज्यादा खाएंगे, क्योंकि दांतों को कोई न कोई व्यायाम चाहिए। क्रोधित व्यक्ति सिगरेट ज्यादा पीएंगे। क्रोधित व्यक्ति बातें ज्यादा करेंगे, वे पागलपन की हद तक बातें कर सकते हैं, क्योंकि जबड़ों को किसी न किसी तरह का व्यायाम चाहिए ताकि ऊर्जा थोड़ी निकल जाए। और क्रोधी व्यक्तियों के हाथ गांठदार और कुरूप हो जाते हैं। यदि ऊर्जा निकल जाती, तो वे हाथ सुंदर हो सकते थे।
जब भी तुम कुछ दबाते हो, तो शरीर में कोई हिस्सा कठोर हो जाता है, उस भाव विशेष से मेल खाता हुआ हिस्सा कठोर हो जाता है। यदि तुम रोते नहीं, तो तुम्हारी आंखें चमक खो देंगी। क्योंकि आंसू जरूरी हैं; वे बहुत जीवंत घटना हैं। जब कभी-कभार तुम रोते हो, सचमुच ही तुम उस रोने में डूब जाते हो-पूरे हृदय से रो लेते हो-और आंसू बहने लगते हैं तुम्हारी आंखों से, तो तुम्हारी आंखें धुल जाती हैं। तुम्हारी आंखें फिर से ताजी, युवा और कुंआरी हो जाती हैं।