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सकते हो। योग जीवन के भोग के विरुद्ध नहीं है, योग है संतुलन। योग कहता है, 'भरपूर जीओ, लेकिन सदा तैयार रहो मरने के लिए भी।' यह बात विरोधाभासी मालूम पड़ती है। योग कहता है, ' आनंद मनाओ। लेकिन ध्यान रहे, यह तुम्हारा घर नहीं है, यह रात भर का पड़ाव है।' कुछ गलत नहीं है। यदि तुम धर्मशाला में ठहरे हो और आनंद मना रहे हो और पूर्णिमा की रात है, तो कुछ गलत नहीं है। इसका आनंद लो, लेकिन धर्मशाला को अपना घर मत मान लेना, क्योंकि कल हम चल देंगे। हम धन्यवाद देंगे रात के इस पड़ाव के लिए, हम अनुगृहीत होंगे-अच्छा था जब तक वह रहा, लेकिन उसके हमेशा बने रहने की मांग मत करना। यदि तुम माग करते हो कि इसे हमेशा-हमेशा रहना चाहिए, तो यह एक अति है; यदि तुम बिलकुल आनंदित नहीं होते क्योंकि यह सदा तो रहने वाला नहीं, तो यह एक दूसरी अति हो जाती है। और दोनों ही ढंग से तुम अधूरे ही रहते हो।
यदि तुम मुझे समझने की कोशिश करो तो मेरा सारा प्रयास यही है : तुम्हें संपूर्ण और समग्र बनाना, जिससे कि सारी विपरीतताए खो जाएं और एक समस्वरता पैदा हो। मैं नहीं चाहता कि तुम नीरस हो जाओ। साधारण भोग का जीवन उबाऊ होता है। साधारण योग का जीवन भी एकस्वर का, नीरस होता है। जो जीवन सारे विरोधाभास अपने में समाए होता है, जिसमें बहत सारे स्वर होते हैं लेकिन फिर भी एक समस्वरता होती है, वह जीवन एक समदध जीवन होता है। और वही समदध जीवन, मेरे देखे. योग है।
और ये पांच व्रत तुम्हें जीवन से तोड़ देने के लिए नहीं हैं, वे तुम्हें जीवन से जोड़ने के लिए हैं। इस बात को अच्छे से स्मरण रख लेना है, क्योंकि बहुत से लोगों ने इन पांच व्रतों का उपयोग स्वयं को जीवन से तोड़ लेने के लिए किया है। वे इसलिए नहीं हैं-वें हैं इससे ठीक विपरीत बात के लिए।
उदाहरण के लिए पहला व्रत है-अहिंसा। लोगों ने इसका उपयोग स्वयं को जीवन से तोड़ लेने के लिए किया, क्योंकि वे सोचते हैं कि यदि तुम जीवन में रहे, तो कुछ न कुछ हिंसा होगी ही। भारत में जैन हैं; वे विश्वास करते हैं अहिंसा में। वही है उनका संपूर्ण धर्म। तुम जरा देखो किसी जैन मुनि को. वह हर चीज से भागता है, क्योंकि सब ओर वह हिंसा की संभावना पाता है। जैनों ने किसी भी तरह की खेती करना बंद कर दिया–बागबानी, खेती-बाड़ी-क्योंकि यदि खेती करते हैं, खेत में जुताई करते हैं, तो हिंसा होगी ही; क्योंकि तुम्हें पेडू-पौधे कांटने होंगे और हर पौधे में जीवन होता है। तो जैन पूरी तरह बाहर हो गए खेती-बाड़ी के काम से।
युद्ध में वे जा नहीं सकते थे, क्योंकि वहां हिंसा होगी। उनके सभी तीर्थंकर योद्धा थे; वे सब क्षत्रिय थे। महावीर और दूसरे सभी तीर्थंकर, वे सब क्षत्रिय थे, लेकिन उनके सारे अनुयायी दुकानदार हैं, व्यापारी हैं! क्या हुआ? लड़ाई पर वे जा नहीं सकते; सेना में भरती वे हो नहीं सकते। इसलिए वे योद्धा तो बन नहीं सकते, क्योंकि हिंसा होगी। वे किसान नहीं बन सकते, क्योंकि कृषि में हिंसा होगी।
और कोई भी शूद्र होना नहीं चाहता, कोई भी अछूत होना नहीं चाहता और दूसरे लोगों के टायलेट और दूसरे लोगों के घर कोई साफ करना नहीं चाहता-कोई नहीं चाहता यह सब; इसलिए शूद्र वे बन नहीं