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एक ताओवादी गुरु ने ताओ की भाषा में कुछ बातें समझाई। उसके सुनने वालों ने पूछा कि आप ताओ को कैसे उपलब्ध हुए जब कि आपका कोई भी गुरु नहीं है? उसने कहा 'मैने इसे पुस्तकों से पाया।' क्या यह संभव है?
61,कभी-कभी यह संभव है। वह व्यक्ति जरूर उस व्यक्ति जैसा रहा होगा जिसकी मैं अभी बात
कर रहा था जो कृष्णमूर्ति को सुन कर संबुद्ध हो सकता है। वह आदमी पक्षियों के गीत सुनते हुए भी संबुद्ध हो सकता है। वह आदमी पुस्तकें पढ़ कर भी संबुद्ध हो सकता है। लेकिन वह अपवाद है, नियम नहीं। ऐसा कभी-कभी हुआ है. यदि व्यक्ति सच में सजग है तो पुस्तक भी मदद दे सकती है; और यदि तुम गहरी नींद में सोए हो, तो बुद्ध भी व्यर्थ हो जाते हैं; बुद्ध भी कोई मदद नहीं कर सकते-तुम उनके सामने ही खर्राटे भरते रहते हो, क्या कर सकते हैं वे? एक जीवंत बुद्ध व्यर्थ हो जाते हैं तुम्हारे लिए यदि तुम सोए रहो। लेकिन यदि तुम सजग हो, तो एक निष्प्राण पुस्तक भी सहायक हो सकती है। यह तुम पर निर्भर करता है।
और कठिन है ऐसा व्यक्ति खोज पाना जो केवल पुस्तकें पढ़ने से ही जाग गया हों लेकिन संभावना है। यह करीब-करीब असंभव ही है, लेकिन असंभव भी घटता है।
ग्यारहवां प्रश्न :
यदि सत्संग अर्थात संबुद्ध व्यक्ति की मुक्त व्यक्ति की उपस्थिति में होना इतना महत्वपूर्ण है? तो क्यों हम दिन में केवल एक-डेढ़ घंटा ही एक-दूसरे के साथ रहते हैं?
इससे ज्यादा तुम्हारे लिए बहुत ज्यादा हो जाएगा; अपच हो जाएगा। इससे ज्यादा तुम मुझे पचा न पाओगे। मैं तो तुम्हारे साथ चौबीस घंटे हो सकता हूं लेकिन तुम नहीं हो सकते। तुम्हें होम्योपैथिक खुराकें चाहिए।