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यदि मैं कहता हूं कि कृष्णमूर्ति संबुद्ध हैं पर असफल हैं, वे किसी की मदद नहीं कर सके–उन्होंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की, असल में और किसी ने इतना श्रम नहीं किया। वे संबुद्ध हैं और जो कुछ वे कहते हैं सत्य है, लेकिन उनसे किसी को मदद नहीं मिली है, तो यह कोई आलोचना नहीं है। मैं इतना ही कह रहा है कि उनसे किसी को मदद नहीं मिली है। तो लाओ किसी को जिसे मदद मिली हो, और करो इस तथ्य का खंडन।
कृष्णमूर्ति के हजारों अनुयायियों से मेरा मिलना हुआ है। किसी को मदद नहीं मिली है। वे स्वयं आते हैं और कहते हैं मुझसे कि वे बीस वर्षों से, तीस वर्षों से, चालीस वर्षों से सुन रहे हैं-सुनते-सुनते बूढ़े हो गए हैं और वे भलीभांति समझते हैं कृष्णमूर्ति को कि वे क्या कह रहे हैं, क्योंकि वे निरंतर एक ही बात कह रहे हैं। चालीस वर्षों से वे एक ही स्वर अलाप रहे हैं उन्होंने पिच तक नहीं बदली, ध्वनि तक नहीं बदली, नहीं। इस धरती पर जो दुर्लभतम सुसंगत व्यक्ति हुए हैं, उन में से एक हैं वे। एक ही स्वर में वे एक ही बात बार-बार दोहराए चले जाते हैं। तो लोग आते हैं मेरे पास और कहते हैं कि वे बौद्धिक रूप से उन्हें समझते हैं, लेकिन कुछ घटता नहीं है। क्योंकि बौद्धिक समझ द्वारा कुछ घट सकता नहीं है।
और यदि किसी को घटा है कृष्णमूर्ति को सुनते हुए, तो मैं कहता हूं तुमसे कि वह उस व्यक्ति को कृष्णमूर्ति को सुने बिना भी घट गया होता क्योंकि कृष्णमूर्ति कोई विधि नहीं दे रहे हैं, कोई साधना नहीं दे रहे हैं। यदि उन्हें सुनते हुए किसी को घटना घटी है, तो वह उस व्यक्ति को पक्षियों को सुनते हुए भी घट सकती थी, या वृक्षों से गुजरती हवाओं को सुनते हुए भी घट सकती थी। वह आदमी तैयार ही था; कृष्णमूर्ति ने उसकी मदद नहीं की है।
और यह बात कृष्णमूर्ति भी समझते हैं। निश्चित ही समझते हैं वे। और वे निराश अनुभव करते हैंउनका सारा जीवन व्यर्थ हुआ। तो मैं एक तथ्य कह रहा हूं आलोचना नहीं कर रहा हूं।
और यदि मैं अमरीकी गुरुओं के बारे में कुछ कहता हूं तो मैं उनके विरुद्ध कुछ नहीं कह रहा हूं। पहली बात, सौ में से निन्यानबे प्रतिशत गुरु नकली हैं। तो जब अमरीकी गुरुओं का सवाल आता है, तब तुम समझ सकते हो! भारतीय गुरुओं में ही सौ में निन्यानबे गुरु नकली हैं, तो जब बात उठती है अमरीकी गुरुओं की, नकल करने वालों की..।
लेकिन मैं किसी के विरुद्ध नहीं हूं। ये सीधे-साफ तथ्य हैं; कोई निंदा नहीं है। असल में मैं उनके विषय में कुछ नहीं कह रहा हूं बस वस्तु-स्थिति के विषय में कह रहा हूं। व्यक्तिगत रूप से मुझे कुछ मतलब नहीं है। अवैयक्तिक वक्तव्य हैं।
दसवां प्रश्न :