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पांचव्रत: अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।
जातिदेशकालसमयानवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम ॥ 31 //
ये पाँच व्रत बनाते हैं एक महाव्रत जो कि फैला हुआ है जाति, स्थान, समय और स्थिति की सीमाओं से परे संबोधि की सातों अवस्थाओं तक ।
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह- ये पांच व्रत मूल आधार हैं, बुनियाद हैं। जितने गहरे रूप
में संभव हो उन्हें समझ लेना है, क्योंकि यह संभावना है कि यम को निर्मित करने वाले इन पाच चरणों को पूरा किए बिना ही कोई आगे बढ़ने लगे।
तुम ऐसे योगियों और फकीरों को संसार भर में देख सकते हो, जो पहले चरण के इन पांच आयामों को पूरा किए बिना ही आगे बढ़ गए हैं। तब उन्हें शक्ति तो उपलब्ध हो जाती है, लेकिन उनकी शक्ति हिंसक होती है। तब वे शक्तिशाली तो बहुत होते हैं, लेकिन उनकी शक्ति आध्यात्मिक नहीं होती। तब वे एक तरह की काली विद्या के जादूगर बन जाते हैं; वे दूसरों को क्षति पहुंचा सकते हैं। यह न केवल दूसरों के लिए खतरनाक होती है, यह स्वयं उन व्यक्तियों के लिए भी खतरनाक होती है। यह तुम्हें नष्ट कर सकती है; यह तुम्हें नया जन्म दे सकती है। यह निर्भर करता है। ये पांच व्रत तो एक आश्वासन हैं कि अनुशासन से जो शक्ति जगती है, उसका गलत उपयोग न हो।
तुम देख सकते हो 'योगियों को जो अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते रहते हैं। यह असंभव है योगी के लिए, क्योंकि यदि योगी ने वास्तव में इन पांच व्रतों को पूरा किया है तो फिर प्रदर्शन में उसकी रुचि नहीं हो सकती; वह प्रदर्शन नहीं कर सकता। वह फिर कोई कोशिश नहीं कर सकता चमत्कारों का खेल दिखाने की - वह उसके लिए संभव नहीं है। चमत्कार उसके आस-पास घटते हैं, लेकिन वह उनका कर्ता नहीं होता।
ये पांच व्रत तुम्हारे अहंकार को पूरी तरह से मिटा देंगे। या तो अहंकार रह सकता है या ये पांच व्रत पूरे हो सकते हैं। दोनों एक साथ संभव नहीं हैं और इससे पहले कि तुम शक्ति के जगत में प्रवेश करो—और योग है शक्ति का जगत, असीम शक्ति का जगत - बहुत - बहुत जरूरी होता है कि तुम अहंकार को मंदिर के बाहर ही छोड़ दो। यदि अहंकार तुम्हारे साथ है तो पूरी संभावना है कि शक्ति का दुरुपयोग होगा। तब सारा प्रयास ही व्यर्थ हो जाता है, एक दिखावा हो जाता है, वस्तुतः मजाक ही हो जाता है।