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आप हमारे लिए कौन सा मार्ग उदघाटित कर रहे हैं?
वह कोई मार्ग नहीं है; तुम्हें चलना नहीं है उस पर। बल्कि, वह एक सीधी सी समझ है। तुम्हें सारी
यात्राओं को रोक देना है। मार्ग होता है यात्रा करने के लिए और कहीं जाने के लिए; मार्ग होता है कहीं पहुंचने के लिए, कुछ पाने के लिए; मार्ग साधन है और साध्य है कहीं बहुत दूर भविष्य में। यही है मेरा मतलब, जब मैं कहता हूं कि जो कुछ भी मैं कह रहा हूं तुम से, वह मार्ग की बात नहीं है, वह केवल सीधी-साफ समझ की बात है। यदि तुम समझ लो, तो तुम मंजिल पर पहुंच ही गए। यदि तुम समझ लो, तो तुम सदा मंजिल पर ही हो। एक क्षण के लिए भी तुम कभी दूर नहीं गए हो मंजिल से, तुम स्वप्न देख रहे होओगे कि तुम दूर चले गए हो, लेकिन तुमने अपना घर एक क्षण के लिए भी छोड़ा नहीं है।
यह है अ-मार्ग। या अगर तुम इसे मार्ग ही कहना चाहते हो, अगर तुम्हें मार्ग शब्द बहुत प्रीतिकर हो, तो तुम इसे एक मार्ग-विहीन मार्ग कह सकते हो। लेकिन मुझे समझने का प्रयत्न करो. यह कोई मार्ग नहीं है। मैं तुम्हें साधन नहीं दे रहा हूं बल्कि साध्य ही दे रहा हूं।
दूसरा प्रश्न :
जब से आपके पास आया हूं ध्यानमय जीवन जीना ज्यादा सरल और ज्यादा स्वाभाविक हो गया है फिर भी प्रकट में मैने बुदधत्व की पूरी तरह आशा छोड़ दी है। क्या ये दोनों बातें विरोधाभासी हैं?
बिलकुल नहीं। बुद्धत्व पाने के लिए यह एक अनिवार्य शर्त है कि तुम्हें उसके प्रति सारी आशाओं
को और इच्छाओं को छोड़ देना होगा। अन्यथा बुद्धत्व की आकांक्षा ही एक दुख-स्वप्न बन जाती है। और जितनी ज्यादा तुम आकांक्षा करते हो उसकी, उतने ही तुम उससे दूर होते हो-जितनी बड़ी आकांक्षा है उतनी ही ज्यादा दूरी होगी। तो उसके प्रति सारी आकांक्षाओं को, सारी आशाओं को छोड़ दो। यदि तुम बुदधत्व के प्रति सचमुच ही आकांक्षारहित हो, तो किसी भी क्षण संभावना है उसके घटने की। थोड़ी जगह निर्मित करो; उसके प्रति आकांक्षा से मत भरे रहो।
बुद्धत्व के घटने में सब से बड़ी बाधा है उसकी आकांक्षा, क्योंकि जो मन कामना करता है