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केवल चाबी को खोज लेना है। खजाना तो मौजूद है, एकदम निकट ही है। अवरोधों की कुछ पर्ते हटा देनी हैं।
इसीलिए सत्य की खोज नकारात्मक है। यह कोई विधायक खोज नहीं है। तुम्हें कुछ जोड़ना नहीं है अपने में, बल्कि तुम्हें कुछ हटाना है। तुम्हें कुछ कांटना है स्वयं से। सत्य की खोज एक शल्य-क्रिया है। वह कोई औषधि-चिकित्सा नहीं है; वह शल्य-क्रिया है। कुछ जोड़ना नहीं है तुम में : बल्कि उलटे कुछ हटाना है तुम से, झाडू देना है।
इसीलिए उपनिषदों की विधि है. 'नेति-नेति।' नेति नेति का अर्थ है : तब तक निषेध किए जाओ जब तक कि तुम निषेध करने वाले तक ही न पहुंच जाओ; तब तक निषेध किए जाओ जब तक निषेध करने की कोई संभावना ही न रह जाए, केवल तुम्हीं बचो-तुम तुम्हारे केंद्र में, तुम्हारी चेतना में जिसे कि हटाया ही नहीं जा सकता क्योंकि कौन हटाएगा उसे? तो निषेध करते ही जाओ 'मैं न यह हूं और न वह हूं।' इसी तरह बढ़ते जाओ। यह भी नहीं, यह भी नहीं-नेति-नेति। फिर एक ऐसी जगह आ जाती है जब केवल तुम ही रह जाते हो-इनकार करने वाला; और इनकार करने को कुछ भी नहीं बचता, शल्य-क्रिया पूरी हो जाती है; तुम पहुंच जाते हो खजाने तक।
यदि इसे ठीक से समझ लो, तो यात्रा बोझिल नहीं रह जाती; यात्रा बड़ी सरल हो जाती है। तुम सरलता से बढ़ सकते हो मार्ग पर, हर पल भलीभांति जानते हुए कि खजाना भूल सकता है, लेकिन खो नहीं सकता है। तुम शायद भूल गए हो कि ठीक-ठीक कहां है वह, लेकिन वह है तुम्हारे भीतर ही। तुम पूरी तरह से आश्वस्त हो सकते हो; इस विषय में कोई अनिश्चितता नहीं है। असल में यदि तुम इसे खोना भी चाहो तो तुम इसे खो नहीं सकते, क्योंकि यह तुम्हारी निजता ही है। यह कोई तुमसे बाहर की बात नहीं; यह अंतर्निहित बात है।
लोग आते हैं मेरे पास और कहते हैं, 'हम परमात्मा को खोज रहे हैं।' मैं पूछता हूं उनसे, 'तुमने उसे खोया कहां है? क्यों खोज रहे हो तुम? क्या तुमने उसे कहीं खोया है गुम यदि तुमने उसे कहीं खोया है, तो बताओ मुझे कि कहां खोया है तुमने उसे, क्योंकि केवल वहीं तुम खोज पाओगे उसे।' वे कहते हैं, 'नहीं, हमने खोया नहीं है उसे।'
तो क्यों तुम खोज रहे हो? तब तो अपनी आंखें बंद करो और भीतर देखो। शायद इस खोज के कारण ही तुम चूक रहे हो उसे। शायद तुम खोज में बहुत व्यस्त हो; तुमने अपने भीतर देखा ही नहीं है कि सम्राटों का सम्राट तो पहले से ही वहां बैठा हुआ है, प्रतीक्षा कर रहा है कि तुम घर आ जाओ। और तुम ठहरे बड़े खाँजी, तो तुम जा रहे हो मक्का, मदीना, काशी और कैलाश! तुम एक महान खोजी हो। तुम भाग रहे हो संसार भर में, सिवाय एक जगह के-जहां कि तुम हो। खोजने वाला ही है मजिलजब वह मौन और शांत हो जाता है।