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हिस्से नहीं हैं। तुम उन्हें हटा नहीं सकते। वे तुम्हें निर्मित करते हैं। वे समग्र के साथ संबंधित हैं, वे पृथक नहीं हैं। समग्रता उनके द्वारा एक इकाई की भांति काम करती है।
तो योग के ये आठ अंग, चरण और अंग दोनों हैं। चरण हैं इस अर्थ में कि प्रत्येक अनुगामी है दूसरे का, और वे एक गहन संबद्धता में जुड़े हुए हैं। दूसरा पहले के पूर्व नहीं आ सकता- पहले को पहला होना है और दूसरे को दूसरा होना है। और आठवां चरण आठवां ही होगा, वह चौथा नहीं हो सकता है, वह पहला नहीं हो सकता है। तो वे चरण भी हैं और जीवंत इकाई भी हैं।
'यम' का अर्थ अंग्रेजी में होता है सेल्फ-रेस्ट्रेट । अंग्रेजी में शब्द थोड़ा अलग हो जाता है। असल में थोड़ा अलग नहीं, यम का सारा अर्थ ही खो जाता है क्योंकि सेल्फ-रेस्ट्रेट निषेध जैसा, दमन जैसा मालूम पड़ता है और ये दो शब्द दमन और निषेध, फ्रायड के बाद बड़े भद्दे शब्द हो गए हैं, कुरूप हो गए हैं। यम दमन नहीं है। उन दिनों जब पतंजलि ने यम शब्द का प्रयोग किया, तो उसका बिलकुल अलग ही अर्थ था। शब्द बदलते रहते हैं। अब भारत में भी संयम शब्द, जो कि 'यम' से आता है, उसका अर्थ नियंत्रण, दमन हो गया है। अब मूल अर्थ खो गया है।
तुमने शायद एक घटना सुनी होगी इंगलैंड के सम्राट जार्ज प्रथम के विषय में ऐसा कहा जाता है कि जब सेंट जॉन कैथेड्रल बन कर पूरा हुआ तो वह उसे देखने गया । वह एक उत्कृष्ट कलाकृति थी। उसका निर्माता, उसका रचनाकार, कलाकार वहा मौजूद था उसका नाम था क्रिस्टोफर रेन सम्राट उससे मिला और उसे बधाई दी। उसने तीन शब्द कहे; उसने कहा, 'यह अम्यूजिंग है। यह ऑफुल है। यह आर्टिफीशियल है।' क्रिस्टोफर रेन बहुत खुश हुआ प्रशंसा पाकर...!
लेकिन तुम्हें तो आश्चर्य ही होगा। उन शब्दों का अब वही अर्थ नहीं रह गया है। उन दिनों, तीन सौ साल पहले अम्प्रइजंग का अर्थ होता था अमेजिंग - आश्चर्यजनक, ऑफुल का अर्थ होता था ऑवइन्सपायरिग - विस्मयकारी, और आर्टिफीशियल का अर्थ होता था आर्टिस्टिक - कलात्मक । प्रत्येक शब्द की एक जीवन कथा होती है, और वह बहुत बार बदलती है। जैसे-जैसे जीवन बदलता है, हर चीज बदलती है : शब्द नया रंग ले लेते हैं। और असल में जिनमें बदलने की क्षमता होती है, केवल वे ही जीवित रहते हैं, अन्यथा वे मर जाते हैं। रूढ़िवादी शब्द जो बदलने के लिए राजी नहीं होते, वे मर जाते हैं। जीवंत शब्द जिनमें कि अपने आस-पास नए अर्थों को संजो लेने की क्षमता होती है, केवल वे ही जीते हैं; और वे सदियों तक जीते हैं कई-कई अर्थों में।
'यम' एक सुंदर शब्द था पतंजलि के समय में, सुंदरतम शब्दों में से एक था। फ्रायड के बाद यह शब्द कुरूप हो गया - न केवल अर्थ बदल गया है, बल्कि सारा रंग-रूप, शब्द का सारा स्वाद भी बदल गया है। पतंजलि के लिए आत्म-संयम का अर्थ स्वयं का दमन नहीं है। इसका अर्थ है स्वयं के जीवन को दिशा देना- ऊर्जाओं का दमन नहीं, बल्कि निर्देशन उन्हें सम्यक दिशा देना क्योंकि तुम ऐसा जीवन