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कौन न सी लय में तुम सर्वाधिक आराम अनुभव करते हो, शांत अनुभव करते हो, एक गहन निर्मुक्ति में बहते हो; कौन सी लय है जिसमें तुम मौन अनुभव करते हो-शांत, सुव्यवस्थित, थिर अनुभव करते हो; कौन सी लय है जब अनायास ही तुम आनंदित अनुभव करते हो, किसी अज्ञात आनंद से भर जाते हो, कुछ उमड़ कर बहने लगता है-तुम इतने ज्यादा भरे होते हो उस क्षण कि तुम सारे संसार को बांट सकते हो और वह समाप्त न होगा।
उस क्षण का अनुभव लो और उस पर ध्यान दो जब तुम्हें लगता है कि तुम संपूर्ण अस्तित्व के साथ एक हो, जब तुम्हें लगता है कि अब कोई पृथकता न रही, एक अखंडता है। जब तुम वृक्षों और पक्षियों के साथ, नदियों और चट्टानों के साथ, सागर और रेत के साथ एक अनुभव करते हो-तब ध्यान देना। तुम पाओगे कि तुम्हारे श्वास की बहुत सी लय हैं, उनका सतरंगा विस्तार है : अति हिंसक, असुंदर, दारुण, नारकीय रूप से लेकर अति मौन, स्वर्ग जैसे रूप तक।
और फिर जब तुम अपनी लय खोज लो, तो अभ्यास करना उसका-उसे अपने जीवन का एक हिस्सा बना लेना। धीरे-धीरे यह सहज हो जाती है, फिर तुम उसी लय में श्वास लेते हो। और उस लय के साथ तुम्हारा जीवन एक योगी का जीवन हो जाएगा : तुम क्रोधित न होओगे, तुम इतनी कामवासना अनुभव न करोगे, तुम स्वयं को इतना घृणा से भरा हुआ न पाओगे। अचानक ही तुम अनुभव करोगे कि एक रूपांतरण घट रहा है तुम में।
प्राणायाम मानव चेतना की महानतम खोजों में एक है। प्राणायाम की तुलना में चांद तक पहुंच जाना भी कुछ नहीं है। बात बड़ी रोमांचक लगती है, लेकिन है उसमें कुछ भी नहीं। क्योंकि तुम चांद पर पहुंच भी जाओ, तो तुम करोगे क्या वहां? यदि तुम पहुंच भी जाओ चांद पर तो भी तुम रहोगे तो वही के वही। तुम जारी रखोगे वही मूढ़ताएं जो तुम यहां कर रहे हो।
प्राणायाम एक अंतर्यात्रा है। और प्राणायाम चौथा चरण है-और कुल आठ चरण हैं। आधी यात्रा पूरी हो जाती है प्राणायाम पर। वह आदमी जिसने प्राणायाम सीख लिया है-किसी शिक्षक से नहीं, क्योंकि वह तो झूठी बात है, मैं उसके पक्ष में नहीं लेकिन जिस व्यक्ति ने अपनी खोज और अपने होश दद्वारा प्राणायाम सीखा है, जिसने अपनी अस्तित्वगत लय को सीख लिया है, उसने आधी मंजिल तो पा ही ली है। प्राणायाम सर्वाधिक महत्वपूर्ण खोजों में से एक है।
और प्राणायाम के बाद है 'प्रत्याहार'। प्रत्याहार वही है जिसकी मैं तुम से बात कर रहा था कल। ईसाइयों का शब्द 'रिपेंट' वस्तुत: हिलू में 'रिटर्न' है-पश्चाताप नहीं, बल्कि प्रतिक्रमण, पीछे लौट आना। मुसलमानों की 'तोबा' भी रिपेंट नहीं है; वह पछतावा नहीं है। उस पर भी थोड़ा रंग चढ़ गया है पश्चात्ताप वाले अर्थ का; तोबा भी पीछे लौट आना है। और प्रत्याहार भी पीछे लौट आना है, वापस आना है-भीतर आना, भीतर की ओर मुड़ना, घर लौटना।