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क्या मादक द्रव्यों की सहायता से कोई अचानक छलांग लगा सकता है?
नहीं। वह मादक द्रव्य की छलांग होगी, तुम्हारी नहीं; और सवाल तुम्हारी छलांग का है, मादक द्रव्य
की छलांग का नहीं। मादक द्रव्यों को बुद्धत्व की तलाश नहीं है; वे वैसे ही बिलकुल ठीक हैं जैसे वे हैं। यदि तुम मादक द्रव्य लेते हो, और तुम्हें कुछ होता है, तो वह वास्तव में उन मादक द्रव्यों को ही घट रहा होता है, तुमको नहीं। वह केवल शरीर के रसायन को ही घट रहा होता है, तुम्हारी चेतना को नहीं। यह एक स्वप्निल घटना होती है-एक कल्पना-जाल।
और कभी-कभी यह घटना सुंदर होती है-ध्यान रहे, कभी-कभी। कई बार तो यह नरक बन सकती है। यह निर्भर करता है। इसीलिए मैं कहता हूं कि मादक द्रव्य केवल तुम्हारे शरीर के रसायन को बदल सकता है, लेकिन यदि तुम्हारा मन नरक से गुजर रहा है, तो मन अब भी गुजरता रहेगा नरक से। अब नरक ज्यादा भयंकर होगा, बस इतना ही; क्योंकि अब रसायन अलग है। तुम जाओगे नरक ही, लेकिन अब तुम ज्यादा तेज चलोगे। मादक द्रव्य तुम्हें गति दे सकता है। तो मादक द्रव्यों को 'स्पीड' कहना ठीक ही है; वे केवल तेजी देते हैं और कुछ भी नहीं। यदि तुम सुंदर और अच्छा अनुभव कर रहे थे, तो तुम अच्छा अनुभव करोगे-और प्रगाढ़ता से। तो भी वे तुम्हें बदल नहीं सकते। जो कुछ तुम हो-तुम वही रहोगे।
और खतरा यह है कि तुम उनके द्वारा धोखे में पड़ सकते हो। और एक बार तुम धोखे में आ जाते हो और तुम सोच लेते हो कि 'यह आनंद की मस्ती है, यही तो है जिसकी जरूरत थी', तो तुम भटक जाते हो। तब तुम सोचोगे सदा उन्हीं सीमाओं में : कि मादक द्रव्य ले लो और अनुभव कर लो परमात्मा को!
तुम कुछ अनुभव नहीं कर रहे हो, क्योंकि परमात्मा अनुभव की बात ही नहीं है। वह है सभी अनुभवों की समाप्ति। जब सारे विषय मिट जाते है-अनुभव एक विषय है-और जब केवल स्वयं का शुद्ध होना मात्र बचता है, केवल चेतना बचती है-जानने को कुछ नहीं होता, केवल जानने वाला ही होता है तो परमात्मा होता है। परमात्मा कोई विषय नहीं है; परमात्मा है विशुद्ध बोध। उसे कोई मादक द्रव्य तुम्हें नहीं दे सकता है।
सातवां प्रश्न :