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पहला प्रश्न:
आप कहते हैं कि बुद्धत्व की तत्काल उपलब्धि के लिए छलांग लगाई जा सकती है। क्या ऐसा संभव है? बुद्धत्व का अर्थ है ऊर्ध्वगमन है न? लेकिन छलांग तो केवल तभी लगाई जा सकती है जब हमें नीचे जाना हो जैसे कि कई मंजिलों वाली इमारत से नीचे जमीन पर छलांग लगाना| कैसे कोई जमीन से इमारत की छत पर छलांग लगा सकता है? किसी चीज पर चढ़ कर ही ऊपर जाना हो सकता है। कृपया समझाएं।
तम पूरी बात ही चूक रहे हो, और तुम चूक रहे हो शाब्दिक प्रतीक के कारण। बुद्धत्व है, 'कहीं
नहीं जाना'-न ऊपर जाना, न नीचे जाना। बुद्धत्व है वहीं होना जहां कि तुम हो-बिलकुल अभी, इसी क्षण। यह कहीं जाना नहीं है; यह होना है। बुद्धत्व में तुम कहीं जाते नहीं। बुद्ध जा नहीं रहे हैं, किसी एवरेस्ट पर चढ़ नहीं रहे हैं। तुम भीतर जाते हो; और भीतर का वह आयाम न तो ऊपर है, न नीचे। वह न तो ऊपर जाने से संबंधित है और न नीचे जाने से; ऊपर और नीचे तो बाहरी दिशाएं हैं। भीतर तुम बिलकुल वहीं होते हो जहां कि हो। बुद्धत्व कहीं जाने की बात नहीं, बल्कि होने की बात है-समग्र रूप से थिर होने की बात है। इसीलिए छलांग संभव है।
तुमने ठीक कहा। यदि यह ऊपर जाने की बात है, तो तुम कैसे छलांग लगा सकते हो? असल में, अगर यह नीचे जाना भी हो, तो एवरेस्ट से छलांग लगाना केवल मूढ़ता होगी। तुम मर जाओगे। नहीं, वह न
ो नीचे जाना है और न ऊपर जाना है। तम तो बस सारी दिशाओं से स्वयं को भीतर समेट लेते हो। धीरे-धीरे तुम थिर हो जाते हो भीतर।
अंग्रेजी शब्द 'मिस्टिक' के लिए ग्रीक शब्द, ग्रीक का मूल शब्द बहुत सुंदर है। ग्रीक मूल शब्द का अर्थ है : 'स्वयं में स्थिर होना।' तब तुम एक 'मिस्टिक' हो जाते हो, रहस्यदर्शी हो जाते हो-कही जाना नहीं, कोई गति नहीं। बिलकुल इसी क्षण अगर तुम किसी भी दिशा में नहीं जा रहे हो-नीचे, ऊपर; दाएं, बाएं; भविष्य, अतीत-कहीं नहीं जा रहे हो, तो तुम्हारी चेतना थिर होती है, कोई कंपन नहीं होता। उस क्षण में बुद्धत्व है। इसीलिए छलांग संभव है।
तुम पूना से कलकत्ता कैसे छलांग लगा सकते हो? यह असंभव है। लेकिन तुम भीतर छलांग लगा सकते हो, क्योंकि तुम वही हो। समय की जरूरत नहीं है, केवल समझ चाहिए। स्थगन की जरूरत नहीं है, कल की जरूरत नहीं है, केवल समझ की जरूरत है। तुम समझ लेते हो और घटना घट जाती है। तो सारा प्रयास इसीलिए जरूरी होता है क्योंकि समझ नहीं होती।