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पहला सर्ग - [१३ यौवनके द्वारा मौका पाकर प्रवेश कर जाते हैं, और पीछे अनेक चेष्टा करके मनुष्यको नष्ट कर देते हैं। बड़ेर राना मी इन अंतरङ्ग शत्रुओंको जीत नहीं सकते। परन्तु केवल इस कारने उनपर विजय प्राप्त कर ली थी। क्योंकि कोई भी राना जब तक कामकी १० अवस्थाऑपर, कोषकी ८ अवस्याओंपर इसी तरह और भी अंतरंग शत्रुओंकी अनेक अवस्थाओंपर विजय प्राप्त न कर ले तब तक वह राज्यका अच्छी तरह शासन नहीं कर सकता ॥ ५१ ।। ___. एक दिन यह पुत्र अपने पिताकी अवश्य पालनीय आना लेकर, अपने साथ २ बड़े होनेवाले (लंगोटिया मित्र ) राजपुत्रोंके, साथ तथा और भी मंत्री आदिके पुत्रोंके साय क्रीड़ा करनेके लिये क्रीडावनको गया। जिसका प्रांत भाग कृत्रिम पर्वतोंसे अत्यंत शोभायमान है ॥ १२ ॥ तथा जो भ्रमरोंके शब्दसे होकारमय हो रहा है, और मलयात्रलकी वायुसे आंदोलित हो रहा है, फूलोंकी सुगन्धिसे जिसका समस्त प्रांत सुगन्धित हो रहा है, जिसमें सरस: और सुंदर फछ.फले हुए हैं, इस प्रकारके इस धनमें विहार करके राजपुत्र तथा उसके साथियोंकी इन्द्रियां तुप्त हो गई ॥ १३ ॥ इसी वनमें क्लेश रहित अशोकक्षके सुंदर तलमें अर्थात् उसके नीचे निर्मल और उन्नत स्फटिक पापाणकी शिलापर बैठे हुए, इन्द्रियों और मनके जीतनेवाले, उत्कृष्ट चारित्रके धारक, श्रुतसागर नामक मुनिको इस राजकुमारने देखा । ये. मुनि स्फटिक शिलापर बैठे हुए ऐसे मालूम पड़ते.थे मानों, अपने पुंनीभूत यशपर ही बैठे. हैं ॥ ५४॥ पहले तो अति हर्पित होकर इस रानकुमारने दूरसे ही अपने ननीभूत शिरको पृथ्वी तलसे सर्श कराते हुए मुनिको