Book Title: Mahavira Charitra
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 295
________________ अढारहवाँ सर्ग । [ २७५ 4 શ્ धारक थे । उस समय में मनीषियोंको मान्य ऐसे सात सौ मुनि अनुत्तम केवली - श्रुत केवलज्ञान के धारक सदा रहते थे ॥ ९२ ॥ प्रसिद्ध अनिंदित और शांतचित्त ऐसे नौ सौ मुनि विक्रिश ऋद्धिक धारक थे । उखाड़ दिये हैं समस्त कृतीर्थ-कुमतरूपी वृक्ष जिन्होंन ऐसे चार सौ वादिगनेन्द्र - वादऋद्धिके धारक मुनि थे ॥ ९३ ॥ समीचीन नीतिशालियोंको बन्ध, शुद्ध चारित्र ही है भूषण जिनका ऐसी श्री चंदना प्रभृति छत्तीस हजार आर्यिकायें थीं ॥ ९४ ॥ अणुव्रत गुणत्रत और श्रेष्ठ शिक्षाव्रत के धारक, जगत् में ऊर्मित ऐसे तीन लाख श्रावक थे । व्रतरूपी रत्नसमूह ही है भूषण जिनका ऐसी तत्वमार्ग में प्रवीण तीन लाख उज्वल - निर्दोष श्राविकायें थीं ॥ ९९ ॥ उस भगवान्की सभा में असंख्यात देव और देवियां तथा संख्यात तियेचोंकी जातियाँ शांत चित्तवृत्तिसे जान लिया है समस्तपदार्थों को जिन्होंने ऐसी मोह रहित निश्चल सम्पत्तत्वकी धारक थीं ॥ ९६ ॥ तीन मुवनके अधिपति जिनेन्द्र देव उक्त गणधर आदिके साथ समस्त प्राणियोंको हितका उपदेश करते हुए करीब तीस वर्ष (छह दिन कम तीस वर्ष ) तक बिहार करके पाधापुर के फूले हुए · वृक्षोंकी श्री - शोभासे रमणीय उपवनमें आकर प्राप्त हुए ॥ ९७ ॥ उस बनमें छोड़ दिया है समाको जिहने अथवा विघटित हो गया है समवसरण जिसका ऐसा वह निर्मल परमावगाढ़ सम्पत्त्रका धारक वह सन्मति भगवान् जिनेन्द्र पछोपवासको धारण कर योगनिरोध. कर कायोत्सर्गके द्वारा स्थित होकर समस्त कर्मों को निर्मूल कर कार्तिक कृष्णा चतुर्दशीको रात्रिके अंत समय में जब कि चन्द्र . . स्वाति नक्षत्र पर था, प्रसिद्ध है श्री. जिसकी ऐसी मिद्धिको प्र 2 ... ★

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