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महावीर चरित्र । खित प्रकारसे विहार किया ।। ८४॥ .
· मिन भावान्के आंगे मार्गमें पृथ्वीपरसे कंटक तृण और उपन, वगैरह दूर कर दिये गये। शीघ्र ही पृथ्वीतलपर योजनों में समान दिशाओंको सुगंधित बनानेवाली सुखकर वायु वहने लगी ।। ८५.।। विना मेवके ही ऐसी सुगंधित वृष्टि होने लगी जिससे कि कीचड़ तो बिलकुल भी नहीं हुई पर पृथ्वीकी रन-धूलि शान हो गई. दब गई। भाकाशमें सब तरफसे वायुके द्वारा उड़ती हुई बनाये बिना किसीके धारण किये ही स्वयं उस जिनेश्वरके भागे आगे चलने लगीं ॥ ८॥ विविध रत्नमयी पृथ्वी मणिमय दर्पणतलकी प्रतिमा बनगई। पृथ्वीमें समस्त धान्यों का समूह बढ़ गया। जान लिया है पक्षको-वैरको जिन्होंने ऐसे मृगोंने छोड़ दिया। अर्थात नातिविरोधी पशुओंने आपसमें नैर करना छोड़ दिया ॥८७|| नहीं पर भावान् चरण रखते थे उस अन्तरिक्ष-आकाशमें आगे और पीछे सात सात कमल रहते थे। आगे आगे देवोंके द्वारा भक्तिपूर्वक बनाई हुई दिव्य तुरई मंद मंद्र शब्द कर रही थीं।॥ ८ ॥ स्कुरायमान हैं भासुर रशिक्षचक (किरणसमूह) जिसका ऐसा धर्मचक उस भगवान के आगे आगे .
आकाशमें चलता था जो कि विद्वानों या देवोंको भी क्षणमाके लिये: दूसरे सूर्य विम्बकी शंकां कर देता था ॥ १९ ॥ उस भगवानके .. इंद्रभूति प्रभूति ग्यारह प्रसिद्ध महानुभाव गणधर थे। लोकमें पूज्य, • अत्यंत उन्नत ऐसे. तीन सौ मुनि चौदह पूर्वोक धारक थे ॥९॥ . नौ हजार नौ सौ उदार शिक्षक चारित्रकी शिक्षा देनेवाले थे।
तेह सौ.साधु अवधि ज्ञानके धारक थे ॥२१॥ धीर और जिनकी . विद्वान् या देव स्तुति करते हैं ऐसे पांच सौ मुनि मनापर्यय ज्ञानके