Book Title: Mahavira Charitra
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 298
________________ : D. ES ASPEE श्री महावीराष्टक स्तोत्र SHERPER 42. ** (१) नित जीव भाव अजीव जिनके, मुकुर सदृश ज्ञानमें । उत्पाद धौव्य अनन्त व्यय सम, दीखते शुभ मानमें || आकाशमणि ज्यों लोक साक्षी, मार्ग प्रकटित करनमें । श्री वीरस्वामी मार्गगामी, हों हमारे नयनमें || ◄ (२) हैं पद्मयुगसे नेत्र जिनके स्पंद क्रोधादिक नहीं । करते जनोंको प्रकट है, क्रोधादि चितमें हैं नहीं || अत्यन्त निर्मल मूर्ति जिनकी, शान्तमय हो स्फुरण में । श्री वीरस्वामी मार्गगामी, हों हमारे नयनमें !! ן . (३) नमती हुई स्वर्गेन्द्र पंक्ति मुकुटमणि छवि व्याप्त हैं । शोभित युगल चरणान्न जिनके मानदोंके आप्त मवच नाशनके लिये हैं, शक्य पाथ स्मरणमें । श्री वीरस्वामी मार्गगामी, हों हमारे नयनमें || (४) 1 मंडूक इह हर्षित. हृदय हो, नासु पूजन मावसे । गुणवृन्दशाली स्वर्ग पहुंचा, सुख समन्वित चावसे ॥ सद्भक्त शिवख वृन्दको किमु प्राप्त करते शरणमें । 1 श्री वीरस्वामी मार्गगामी, हों हमारे नयनमें ॥

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