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सातवां सर्गः। मृदुतासे-कोमलतासे. शांत हो सकंता है उसके ऊपर गुरू शन नहीं छोड़ा जाता. | जो शत्रु साम-सांत्वनासे सिद्ध किया जा सकता है उसके लिये दूसरे उपायोंके करनेसे क्या प्रयोजन ? ॥ २३ ॥ जो शत्रु सामसे सिद्ध कर लिया गया फिर वह मौकेपर विरुद्ध नहीं हो सकता । निस अग्निको पानी डाल कर ठंडा कर दिया जाय क्या वह फिर जलनेकी चेष्टा कर सकती है? ॥२४॥ जो महापुरुप हैं व कुपित-क्रुद्ध हो जाय तो भी उनका 'मन विकारको कमी प्राप्त नहीं होता । समुद्रका जल पूंसकी आगसे कमी गरम नहीं किया जा सकता ॥२५॥ जो अच्छी तरहस निश्चय करके नीति मार्गपर चलनेका प्रयत्न करता है उसका कोई शत्रु : ही नहीं होता । टीक ही है, जो पथ्य भोजन करनेवाले हैं उनको क्या व्याधियां जग मी बाधा दे सकती हैं ॥२६॥ उपायका यदि योग्य रीतिसे विनियोग न किया जाय तो क्या वह अभीष्ट फलको दे सकता है ? यदि दूधको कंच घड़ेमें रख दिया जाय तो क्या वह सहन ही दही बन सकता है ? ॥ २७ ॥ सामने खड़े हुए . 'परिपूर्ण शत्रुका भी मृता-कोमलतासे ही भेद हो सकता है। नदियोंका वंग प्रति वर्ष क्या सारे पर्वतका मेदन नहीं कर डालता ? . |२८|| जगत्में भी तेज निश्चयसे मृदुताके साथ रह कर ही हमेशा स्थिर रह सकता है । दीपक क्या स्नेह-तेल सहित अवस्थाके विना बुझ नहीं जाता ॥२९॥ अतएव मेरी समझ ऐसी है कि अश्वग्रीव विषयमें निश्चयसे सामस वर्ताव करना चाहिये और किसी तरह नहीं। यह कहकर मंत्री सुश्राने यह जाननेके लिये विराम लिया कि. देखें इसार दूसरे लोग अपना २ क्या मत देते हैं । ॥३०॥,