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नवा सर्गः। . [१३१ काट दिया । वे काटे हुए वाण पुषमय हो गये। दूसरों का मंग भी सजनोंको गुणके लिये-हितका कारण हो जाता है। अर्थात् कोई यदि सज्जनोंका किसी तरह अपमानादिक करता है तो उससे उनकासंजनों का अपमानादिन होकर कुछ हित ही होनाता है ।। ८५ ॥ चक्री-अशग्रीवने पृथ्वीतल और आकाशमार्गको एक कर देनेवाली अंधकारपूर्ण रात्रि करदी परन्तु त्रिपिष्टके कौस्तुभ रत्नकी सूर्यकी प्रखर किरणोंको भी जीतनेवाली दीप्तिने उसको छेड़ दिया-उस अंधकारको नष्ट कर दिया ।। ८६ ॥ अश्वग्रीवने दृष्टि-नेत्रके विषकी
अग्निकी रेख से दिशाओंको चितकबरा बनानेवाले सपो-नागनाणोंको : चारो तरफ छोड़ा कृष्णने (त्रिपिष्टन) पंखोंकी वायुसे वृक्षों को उखाड़
देनेवाले गरुड़-गरुड़नाणों से उनका निराकरण किया ।१७। शग्रीवन स्थिर और उन्नत शिखरोंवाले पर्वतोंसे जिनपर सिंह गर्जना कर रहे हैं समस्त आकाशको द दिया। वनो आयुधवाले इंद्रक समान श्रीके धारक त्रिपिटने क्रोबसे बनके द्वारा उनको शीघ्र ही मेह डाला ||८|| उस धीर (अग्रीव) ने आकाश और पृथ्वी '' तलको विना ईंधनके जलनेवाले ज्वलन-अग्निवाणोंसे व्याप्त कर दिया। परंतु विष्णुने विद्यामय मेघोंसे नल वर्षाकर शीघ्र ही .. उनको शांत कर दिया ॥८९॥ अश्वग्रीवने हनारों उरकाओं-जा
लाओंसे आकाशके जलाने-प्रकाशित करनेवाली अत्यंत दुर्निवार · शक्तिको छोड़ा। परंतु वह पुरुषोत्तमके गलेमें जिसमें से किरणे
निकल रही हैं ऐसी प्रकाशमान हारकी लड़ी बन गई ॥ ९० ॥ .इस तरह निष्फल हो गये हैं समस्त दिव्य-देवोपनीत शस्त्र जिसके ऐसा वह दुर्वार अश्वग्रीव मिसकी धार अग्निकी ज्वालाओंसे घिरी हुई है ऐसे चकको हायमें लेकर स्मेरास्य होकर-मुखपर कुछ