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१८२ ] महावीर चरित्र । ... द्युतिको धारण करनेवाला है वित्र जिसका ऐसे श्वेत. किरणोंके . धारक चंद्रने इन्ढे हुए अंधकारको भी शीघ्र ही नष्ट कर दिया। निसका मंडल शुद्ध है वह किस कामको सिद्ध नहीं कर सकता है ? ॥६०॥ कमलिनी, प्रखर नहीं हैं किरण जिसकी ऐसे चंद्रमाकी पादों (किरणों; दूसरे पक्षमें चरणों) की ताड़नाको पाकर भी हमने । रगी। सम्मुख रहे हुए प्रिगतमकी चेष्टा क्या बंधुओंको सुखके लिये नहीं होती है । ६१ ॥ सरस चंदनकी पंकके समान है छाया जिसकी ऐसी ज्योत्स्ना-चांदनीक द्वारा भरा हा समस्त जगत । ऐसा मालूम पड़ा मानों चलायमान होते हुए क्षीर समुद्रकी नष्ट नहीं हुई है जलस्थितिकी शोभा निसकी ऐसी वेलाके द्वारा ही व्याप्तः, होगया है ।। ६२ ॥ तुहिनांशु-चंद्रमाकी शीतल किरणों के द्वारा भी कमलिनी तो हिलन चलने लगी या प्रसन्न हो उठी, पर क चक्रवाक ज्योंका त्यों ही बना रहा। अभीष्ट वस्तुका वियोग होना-:: नेपर और कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जो प्राणियोंको हर्प उत्पन्न कर सके ॥ १३॥ अगाध त्रासे भीतर बहती हुई। वासनायें जहां पर ऐसे मानिनी जनोंके मनको चंद्रमाकी किरणोन है समुद्रके नलकी तरह दूरसे ही यथेष्ट उल्वण-बड़े भारी क्षोभको प्राप्त कर दिया ।। ६४ ॥ अपने मित्र पूर्ण चंद्रको पाकर अनंगने भी। झटसे सब लोगोंपर विनय प्राप्त करली । ठीक ही है मौके पर अच्छी संहायताको पाकर तुच्छ व्यक्ति भी विजय-लक्ष्मी प्राप्तः कर लेता : है॥६५॥ कुमुद कमलके केसरकी रेणुओंको बखेरता हुआ वायु...। सांद्रचंदनके समान शीतल था तो मी प्रियोसे वियुक्त हुई वधुओंको.. वह दुःसह होगया । उनको मालुम पड़ामानों यह कामदेवरूप अग्निके