________________
'-rammm.ininmommmm
MANAVRAVAANNAAM
पन्द्रहवाँ मर्ग। [ २१९ बढ़ाई है:।। १४३॥ हिंमा अं चोरी परिग्रहका संरक्षण इनकी
अपहास जो निरंतर चितवन करना इसको नियम रौद्रव्यान कहा ...है। इस व्यानका करनेवाला अविरत-पहले गुणस्यान्स लंकर चौथ ...गुणस्थान तकवाला जीव होता है। कदाचित् पांचवें गुणास्थान
वाना भी होता है ।।१४। जो मले प्रकार विषय-निरंतर चितवन , करना यह धर्य ध्यान है, यह आना, अपाय, विराक और संस्थान - इन विषयोंकी अपेक्षासे टलन्न होता है इसलिये चार प्रकारका
है। भावार्थ-धम्यन्यानके आजा वित्रय, अपाय वित्रय, विषाक विचय और सम्यान वित्रय ये चार मेढ़ हैं। पदार्थ अति मुहम हैं . और आमा-कमकि उदयसे जड़ बना हुआ है, इस लिये उन ' विषयाम आगमक अनुसार न्यादिकका यळे प्रकार चितवन करना
इसको आना वित्रय धर्म्यन्यान कहते हैं ।। १४५ ॥ मिथ्यात्वक. • निमित्त अत्यंत मूह होगया है मन जिनका ऐसे अनानी प्राणी
मोसको बाहत हुए भी जन्मांधकी तरह सर्वज्ञोक्त मतसे त्रिकालसे · विनुस रहकर सम्यग्ज्ञान सन्मार्गमे दूर जा रहे हैं। इस प्रकार से : जो मार्गक अपायका चिंतन करना इसको विद्वानोंने दुसरा-अपाय वित्रय वयंच्यान बताया है।-१४६ ॥ अयवा आत्मास कमकि. दूर होने की विधिका निरंतर चिंतन करना इसको भी जिन मगवा-- नूनं अपाय वित्रयं ध्यान कहा है। यदी ये शरीरी अनादि मिथ्यात्व रुप अहितसे किस तरह छूटे इस बातक निरंतर स्मरण करनेको भी अपाय वित्रय कहते हैं ।। १४६ ॥ ज्ञानावरणादिक कमकि समूहका जो व्यादिक निमित्तके वशते उदय होता है जिससे कि विचित्र · फलोंका अनुभव होता है। इसी अनुमके विषयमें निरंतर मकः