Book Title: Mahavira Charitra
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 280
________________ २६० ] महावीर चरित्र । रूपी रुनके द्वारा सत्तामें बैठे हुए घाति कर्माको नष्ट कर केवल ज्ञानको प्राप्त किया ॥१२८-२९॥ अपनी केवलज्ञान संपत्तिके द्वारा सदा यथास्थित समस्त लोक और अलोकको युगपत् प्रकाशित करते.. हुए, इन्द्रियोंकी अपेक्षासे रहित, अच्छाया ( शरीरकी छायाका न पड़ना) इत्यादिक दश प्रकारके गुणोंसे युक्त जिनेश्वरको. त्रिदशेश्वरोंने आकर भक्तिपूर्वक नमस्कार किया ॥ १३०॥ इस प्रकार अशग कवि कृत वर्द्धमान चरित्रमें "भगवत्केवलं शनोत्पत्ति' नामक सत्रहवां सर्ग समाप्त हुआ। अढारहकर सम्। .. . इन्द्रकी आज्ञासे और अपनी मक्तिसे कुवरन उसी समय उन भगवान्की रमणीय तथा विविध प्रकारकी श्रेष्ठ विभूतिसे. युक्त समवसरण भूमिको बनाया । तीन लोकमें ऐसी कौनसी अभिपतः . वस्तु है जिसको देव सिद्ध नहीं कर सरते॥2॥ बारह योजना.. लम्बे नीलमणिमय पृथ्वीतलको चन्द्रपमान निर्मल रजोमय शाल. (परकोटा)ने इस तरह घेर लिया जैसे शरद् ऋतुके नमोभाग-आकार शको मेव समूह घेर लेता है ॥ २ ॥ इस प्रकाशमान रेणुशालके परे सिद्ध रूपके धारक, मानस्तम्भ थे। जो ऐसे मालूम पड़ते थे । मानों महादिशाओं में अंत देखनेकी इच्छासे पृथ्वीपर आये हुए मुक्तिके : .. प्रदेश हो ॥३॥ मानस्तम्भोंके बाद नंदाद नामके धारक - चार -सरोवर थे जो निर्मल जलके भरे हुए और कमलपत्रोंसे पूर्ण थे। वे... मेघ-वर्षा के अंत समयमें-शरामें हुए. दिशाओंके मुखकी तरह । मान पड़ते थे ॥ ४ ॥ इनके बाद वेदिका सहित निर्मल जलसे भरी

Loading...

Page Navigation
1 ... 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301