Book Title: Mahavira Charitra
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 284
________________ २६४ ] महावीर चरित्र।. . . . .. बनी हुई वंदनमालाओंको धारण करनेवाले श्रेष्ठ रत्नमय दश.. दश तोरण लगे हुए थे ।। २४ ॥ उनके-तोरणों के बीच वीचमें नव नव स्तुए थे जो ऐसे जान पड़ते थे मानों कौतुकसे जिनेन्द्रवका दर्शन करने के लिये पदार्थ ही प्रकट हुए हैं। अथवा सिद्धोंकी प्रतिगतनासे विनत होने के कारण चन्द्रातप श्रीमुख पृथक् पृथक् मुक्तिक एकदेश स्वयं इकट्ठे होकर पृथ्वीपर आकर विराजमान होगये हैं ॥ २५ ॥. उनके चारोतरफ अनेक प्रकारके बड़े बड़े कूट : और.सभागृह शोमायमान थे जिनमें ऋषि मुनि अनगार निवास करते थे तथा घना और मालाओंके द्वारा जिनका आतप विरल बना दिया गया था ॥ २६ ॥ उसके बाद तीसा पिङ्गल मणियों का बना हुआ है गेपुर जिसका ऐमा आकाश-झाकाशपमान सच्छ अथवा प्रकाशमान स्फटिकका बना हुआ प्राकार.था जो ऐमा जान पड़ता मानों मूनताको धारण कर जिनमगवानकी महिमाको देखने के .. लिये स्वयं पृथ्वीपर आया हुआ वायुमार्ग ही है॥२७॥ उन व्योम-.. चुम्बी गोपुरोंके दोनों बाजुओंमें विचित्र रत्नोंकी बनी हुई कलश -- आदिक आठ मंगल वस्तुएं रखी हुई शोमायमान थीं ॥ २८॥.. · कोटसे लेकर फैली हुई दक्षिगमें महापीठसे. स्पर्श करनेवाली प्रकाशन ...मान बेदिकायें थीं जो कि परस्पर प्रथक रूपसे प्रकाशमान आकाश . ' समान स्वच्छ स्फटिककी बनाई हुई थीं। जिसपर विनय सहितं बारह गण हर्षसे विराजमान हो रहे थे। उनके बीचमें रूचिरकांतियुक्त और मनोज्ञ तीन कटनीका सिंहासन शोमायमान था ॥२९॥ "उनके ऊपरं अनुपम धुतिके धारक- सुवर्णके बने हुए स्तम्भोंके द्वारा धारण किया गया। भ्रमरंमंडलसे घिरे हुए, और खिले हुए सुवर्ण

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