Book Title: Mahavira Charitra
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 286
________________ २६६.] महावीर चरित्र। . . . . . . प्रकाशमान सिंहासनके अन्त तक सोलह सीदियोंकी माला लगी हुई . थी ॥ ३६ ॥ तीन परकोटाभोंके सुंदर और उन्नत रत्नमय गोपुरोंमें . क्रमसे व्यंतर, मवनवासी और कल्पवासी इस तरह तीन द्वारपाल थे . जो उदार वेपके धारक थे और जिन्होंने हाथमें सुंदर सुवर्ण का वेत. धारण कर रखा था ।। ३७ ॥ प्रमाणवेत्ताओं-गणितज्ञोंमें जो श्रेष्ठ : हैं उन्होंने पहले परकोटेका और मनोज मानस्तम्भका अनेक प्रकारकी विभूतिसे युक्त अंतरका-बीके क्षेत्रका प्रमाण आध योजनका बताया है ।। ३८ ॥ जिनागमके जाननेवालोंने कृत्रिम पर्वत पंक्तियों से शोभायमान मनोहर पहले और दूमरे कोटके बीच क्षेत्रका प्रमाण तीन योजनका बताया है ॥ ३९॥ विचित्र. रस्नकी प्रभाकी पंक्तिसे मारित-हटा दिया-तिस्कृत कर दिया है. सूर्यको प्रमाको • जिसने ऐसे दूसरे और ती रे कोटका र आचार्योने दो योननका बताया है ॥ ४० ॥ तीसरे. कोटका और व्यवधान रहित विचित्र : ध्वजाओंसे आच्छादित ढके हुए वायुमार्ग-आकाशमार्गका, और.. स्फुरायमान है प्रमा-नि:सकी ऐसे सिंहासनका अंतर विद्वानोंने आधे । योजनका बताया. है ।। ४.१ ।। जिन. भगवान् जहां बैठते हैं उस · महान् कांतिके धारक प्रदेशका और पृथ्वीतलके भूषण, रस्नोंसे । . "शोभायमान स्तम्भोका आचालीने छह योजनका अंतर बताया है । ॥ ४२ ॥ इस प्रकार उस निनेश्वरका बारह योजनका धाम-समव-." शरणःशोमायमानः था । देवेन्द्रों धरणेन्द्रों और नरेन्द्रोंसे व्याप्त वह . : त्रिलोकीको दुमरा और जैसा मालुम पड़ता था ॥४३॥ भ्रम निसका । • अनुमरण कर रहे हैं; निसने दिश ओंके मुखको श्वेत बना दिया है ऐसी पुष्पवृष्टिं भगवान्के आगे आकाशसे पड़ती थी। जो ऐसी जान पड़ती.

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