Book Title: Mahavira Charitra
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 290
________________ - -- - - २७० ] महावीर चरित्रं । . निमका- ऐसा है तथा प्रसिद्ध है धैर्यधन जिनका ऐसे पुरुषोंको भी अत्यंत दुर्धर है ।। ५९ ॥ हे जिनपते! तुन अपूर्व तमोपहा. ( अंधकारके नष्ट करनेवाले चन्द्रमा) हो । प्रतिदिन कुमुदको-कु मुद पृथ्वीके हर्षको; दूसरे पक्षमें कमलको) बहानेवाले हो। परमप्राशी और अविनाशीको तेनके धारक हो । आवरण रहित होकर भी अचल : स्थितिके धारक हो ॥६०॥ आकाशमें उत्पन्न हुई महानं रनके दूर करनेवाली वृष्टिसे नवीन जलको प्राप्त करनेको चातक जिस प्रकार . जगतमें तृषा रहित हो जाते हैं उसी प्रकार हे जिन ! आपकी वाणी--उपदेशामृतको पाकर साधुपुरुष तृपारहित नहीं हो जाते हैं यह बात नहीं हैं, अवश्य हो जाते हैं । ६१ ॥ आप श्रेष्ठ गुण.रधि-गुण:रत्नाकर होकर भी अनलाशय हो (जलाशय नहीं हो; श्लेषसे दूसरा अर्थ होता है कि तुम जडाशय-गड़बुद्धि नहीं हो). ..' विमदन (मदन-कामदेवसे रहित श्लेषसे दूसरा अर्थ होता है कि : - मद-गर्वसे रहित) होकर भी महान् काम सुखके. देनेवाले हो। तीन ' . .. जगत्के स्वामी होकर परिग्रह रहित हो । हे जिन ! आप की ये... • चेष्टा सा विरुद्ध है ॥ ६२ ॥ हे स्वामिन् ! आपके गुण और चन्द्र माकी किरणें दोनों समान हैं। दोनों ही सब लोगोंको आनन्द देनेवाले सुधा समान.(किरणोंकी पक्षमें सुधासे) विशद, और अंध कारको नष्ट करनेवाले हैं । इसलिये आपके गुण चन्द्रमाकी किरण - समानं मालूम होते हैं और चन्द्रमाकी किरणें आपके गुणों के समान. • मालूम होती हैं.॥ ६३ ॥ हे जिन ! जिस तरह आपके दो.श्रेष्ठ नया है, उस तरहसे ही आपका मत मी .शोमायमान है। क्योंकि दोनोंको ही जगतमें भव्यपुरुष नपस्कार करते हैं। दोनोंके विषय .

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