Book Title: Mahavira Charitra
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 288
________________ : २६८ ] महावीर चरित्र । . . . . . . करते थे । फटे हुए हैं मुख जिनके ऐसे केसरियोंसे युक्त तथा: नाना प्रकारकी पत्रलताओंसे अन्वित वह बन. जैसा जान पड़ता था। अथवा रत्न मकरसे युक्त वह ऐसा.जान पड़ता था मानों बड़ा भारी, समुद्र . ही हो ॥ ४८ ॥ इन्द्रने देखा कि जिनेश्वरकी दिव्य ध्वनि नहीं. : हो रही है तब वह अपने आधिज्ञानसे मिसको देखा था उसी गणधरको लाने के लिये गौतमयामको गया । अर्थात् इन्द्रको अवधि: - ज्ञानसे मालूम हुआ कि गणधरके न होनेसे दिप ध्वनि नहीं हो ' रही है । और यह भी मालूम हुआ कि वर्तमानमें गणधर पदके योग्य गौतम नामक विद्वान् है । यह जानकर वह उसको लानेके. लिये निम ग्राममें वह-गौतम रहता था उसी ग्राममें गया ॥४॥ उस ग्राममें रहनेवाले, निर्मलबुद्धि और कीर्तिसे जगतमें प्रसिद्ध गौतम गोत्रमें मुख्य उस इन्द्रभूति नामक ब्राह्मणको विद्यार्थी का वेश धारण करनेवाला इन्द्र वादका छल करके उस ग्रामसे जिनवरके , निकट लिग लाश ॥ ५० ॥ मानस्तम्भके देखनेसे नम्रीभूत हुए शिरको धारण करनेवाले उस विद्वान् गौतमने भगवान् से जीवस्वरूपका उद्देशकर प्रश्न किया। होने लगी है दिव्यध्वनि जिसकी ऐसे जिनपतिने उसके संदेइको दूर कर दिया। तब गौतमने । आने पांच सौ शिष्य ब्रह्मा पुत्रोंके साथ साथ दीक्षा धारण कर ली * ॥ ५१ ॥ उस गौतमने पूर्वाह्नमें द्रीक्षाके साथ ही निर्मल परिणामों.. के द्वारा तत्कल, बुद्धि, औषधि, अक्षय, ऊर्ज, रस, तप, और विक्रिया इस सात लधियोंको प्राप्त किया । और उसी दिन आ. राह्नमें उस गौतमने जिनपतिके मुखसे निकले हुए पदार्थों का है विस्तारं जिसमें ऐसी उपांग सहित, द्वादशाङ्ग श्रुतकी पद रचना..

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