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महावीर चरित्र ।
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पुरोंके भीतर एक सुंदर वीथी-गली थी। उनके दोनों भागों में (ऊपर) दो दो उन्नत नाट्यशालाये बनी हुई थीं। जो कि मृदंगों
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की ध्वनि मानों भव्य जीवोंको दर्शन करनेके लिये बुला रहीं हैं ऐसी जान पड़ती थीं ॥ ११ ॥ विधियों के दोनों भागों में नाट्यशालाओंके बाद देवोंके द्वारा सेविन क्रमसे अशोक, सप्तच्छंद, चंपक, आम्रोंसे व्याप्त चार प्रमदन थे ॥ १२ ॥ उनमें, जो विस्तृत शाखाओं के द्वारा चंचल बाल प्रवालों - कोमल पत्तोंसे मानों दिशारूपी बन्धुओं की कर्णपूर श्री को बना रहे हैं ऐसे, अथवा जो जिन भगबोनकी निर्मल प्रतिकृतिको धारण किये हुए हैं ऐसे अशोक आदिके.. चार प्रकारके जाग वृक्ष थे। जो कि कमलखंडों को छोड़कर प्रत्येक.. पुण्य से लिये हुए मत्त मधु रोंके मंउनसे मंडित हो रहे थे ॥ १॥ .. उन चार वनों में निर्मल मटकी भरी हुई तीन तीन व. पिकायें शोभायमान थीं। जो कि गोल त्रिकोण और प्रकट चतुष्कोण आकारको धारण करनेवाली थीं । नंदा सुवर्ण कमलों से, नंदवंती उत्पन्न समूहोंसे, : 'मेघा' नील कमलोंसे, और नंदोत्तरा स्फटि के कुमुदोंसे व्याप्त थी ॥ १४ ॥ हुन बनों में ही सुर और असुरोंसे व्याप्त, प्रतिवर्ती लता मंडपोंसे घिरे हुए, जिन पर त "यूहों का मंडल शब्द कर रहा
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कीड़ापर्वत बने हुए थे। कहीं पर महल, कहीं मणिमंडप, कहीं अनेक प्रकारकी आधार भूमित्राली गृहपंक्ति, कहीं चक्रांदोल (!) सभामंडप, और वहीं पर अत्यंत मनोज्ञ मुक्तामय शिश्रपद बने हुए थे ॥ १५ ॥ बनके बाद वज्रपय वेदी थी जिपने आनी -किरण - संपत्ति के द्वारा नभस्तलमें इन्द्र धनुषका मंडल प्रसारित कर रक्खा था। जो कि चार श्रेष्ठ रत्नतोरणों से युक्त थी ॥ १६ ॥ वीथि योंके