Book Title: Mahavira Charitra
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 278
________________ २५८] महावीर चरित्र। .. ... ......... .......................rer armirewor' समय पप्ठोपवास कर तपको धारण किया ॥ ११५ ॥ भगवान .. भ्रमरंसमान नील केशीको निनको कि उन्होंने पांत्र मुष्टियोंके द्वारा पाड़, डाला था इकट्ठा करके और स्वयं मणिमय माननमें रख कर इन्द्रने : सीर समुद्र में पधरा दिया ॥ ११९ ॥ देवगण विचित्य और त लक्ष्मीसे युक्त भगवान्की वंदना करके अपने अपने स्थानको गये। : इधर 'यह वह इस तरह जनता क्षणमात्र तक ऊपरको दृष्टि करके : उनको आकाशमें देखती रही ।।११७॥ ___भगवान्ने शीघ्र ही सात लगियोंको प्राप्त कर लिया ! और । मनापर्यय ज्ञानको पाकर वे तम हित भगवान् रात्रिके समय नहीं , प्राप्त किया है एक कलाको जिसने ऐमे चन्द्रमाकी तरह विलकुल. :: शोभने लगे ॥ ११८ ॥ एक दिन महान् सत्व-पराक्रमसे युक्त वीर : भगवान्ने जब कि सूर्य आकाशके मध्यभागमें आ गण उस समय : बड़े महलोंसे भरे हुए कूल्यपुरमें पारणाके लिये-अर्थात् उसके अनंतर आहार करनेके लिये प्रवेश किया ॥११२ । कूल यह पृथ्वीमें प्रसिद्ध है नाम निपका ऐसा एक राजा उस नगरका स्वामी . . था। वह अणुव्रतोंका धारक और अतिथियों का पालक-सकार: करनेवाला था । उसने अपने घरमें प्रवेश करते हुए भगवान्को पड़ गाया-आहार करनेके लिये ठहराया ॥ १२० ॥ पृथ्वीपर नवीन । पुण्यक्रमके वेत्ताओंमें अतिशय श्रेष्ठ उस राजाने नवीन . पुण्यकी चिकीर्षा-संचन करनेकी इच्छ,से भगवान्को भोजन कराया। '.: भगवान् भी भोजन करके उसके महलसे निकले ॥ १२१ ॥ भोजन .. - करके महलके बाहर भगवान्के निकलते ही उस रानाके घरके ".. " आंगनमें आकाशसे पुष्पवृष्टिके साथ साथ रत्नवर्षा होने लगी।

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