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महावीर चरित्र |
समान अवदात स्वच्छ मासे युक्त, मस्तकपर रक्खे हुए (मुकुंट आदिकमें लगे हुए; महलोंके पक्ष छत वगैरह जड़े हुए), रत्नोंकी. में न कांति से जिन्होंने आकाशको पल्लवित कर दिया है ऐसे, तथा गोदीके भीतर अच्छी तरह बैठा लिया है रमणीय - रमणियोंको जिन्होंने ऐसे थे ॥ ११ ॥ जहां पर स्त्रियोंके निःश्वासकी सुगंधिमें रत हुए. भ्रमर, उनके हाथमें लगे हुए महान् क्रीड़ा कमलको और झरता हुआ है मधु जिससे ऐसे कर्णेललको भी छोड़कर मुंखपर पड़ते हैं । वे चाहते हैं कि ये त्रिशं अपने कोमल करोंसे बार बार हमारी ताड़ना करें ॥ १२ ॥ उस नगर में, मोतियों के.. भूषणोंकी चारो तरफ छोड़ी हुई किरणजालसे शेत बना दी है.. समस्त दिशाओंको जिन्होंने ऐसी वाराङ्गनायें बेश्यायें मदक्रीड़ा करती हुई - इठलाती हुई इधर उधर घूमती फिरती हैं। मालूम पड़ता है मानों दिनमें भी सुभग ज्योत्स्नाको दिखाती फिरती ॥ १३ ॥ विमानोंमें लगे हुए निर्मल चित्र रत्नोंकी छायाके वितान चंदोआसे चित्र विचित्र बना दिया है समस्त दिशाओंको जिसने ऐसी दिनश्री - दिनकी शोभा जहां पर प्रतिदिन ऐसी मालूम पड़ती
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है मानों इसने अपने शरीरको इन्द्र धनुषके दुपट्टे में ढक रक्खा हो ॥ १४ ॥ जहां पर निवास करनेवाली जनता अ-हीन उत्तम
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शरीरकी धारक (श्लेषके अनुसार दूसरा अर्थ होता हैं कि सर्पशनके
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समान शरीरकी धारक) होकर भी अभुजंगशीला है--अर्थात भुजंगविटपुरुषकासा (श्लेषसे, दूसरा अर्थ सर्पकासा) शील-स्वभाव रखनेवाली नहीं है। मित्र (श्लेषके अनुसार मित्र शब्दका अथ सूर्य भी होता.