Book Title: Mahavira Charitra
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 260
________________ २४० ] महावीर चरित्र | समान अवदात स्वच्छ मासे युक्त, मस्तकपर रक्खे हुए (मुकुंट आदिकमें लगे हुए; महलोंके पक्ष छत वगैरह जड़े हुए), रत्नोंकी. में न कांति से जिन्होंने आकाशको पल्लवित कर दिया है ऐसे, तथा गोदीके भीतर अच्छी तरह बैठा लिया है रमणीय - रमणियोंको जिन्होंने ऐसे थे ॥ ११ ॥ जहां पर स्त्रियोंके निःश्वासकी सुगंधिमें रत हुए. भ्रमर, उनके हाथमें लगे हुए महान् क्रीड़ा कमलको और झरता हुआ है मधु जिससे ऐसे कर्णेललको भी छोड़कर मुंखपर पड़ते हैं । वे चाहते हैं कि ये त्रिशं अपने कोमल करोंसे बार बार हमारी ताड़ना करें ॥ १२ ॥ उस नगर में, मोतियों के.. भूषणोंकी चारो तरफ छोड़ी हुई किरणजालसे शेत बना दी है.. समस्त दिशाओंको जिन्होंने ऐसी वाराङ्गनायें बेश्यायें मदक्रीड़ा करती हुई - इठलाती हुई इधर उधर घूमती फिरती हैं। मालूम पड़ता है मानों दिनमें भी सुभग ज्योत्स्नाको दिखाती फिरती ॥ १३ ॥ विमानोंमें लगे हुए निर्मल चित्र रत्नोंकी छायाके वितान चंदोआसे चित्र विचित्र बना दिया है समस्त दिशाओंको जिसने ऐसी दिनश्री - दिनकी शोभा जहां पर प्रतिदिन ऐसी मालूम पड़ती " • है मानों इसने अपने शरीरको इन्द्र धनुषके दुपट्टे में ढक रक्खा हो ॥ १४ ॥ जहां पर निवास करनेवाली जनता अ-हीन उत्तम " शरीरकी धारक (श्लेषके अनुसार दूसरा अर्थ होता हैं कि सर्पशनके 4 समान शरीरकी धारक) होकर भी अभुजंगशीला है--अर्थात भुजंगविटपुरुषकासा (श्लेषसे, दूसरा अर्थ सर्पकासा) शील-स्वभाव रखनेवाली नहीं है। मित्र (श्लेषके अनुसार मित्र शब्दका अथ सूर्य भी होता.

Loading...

Page Navigation
1 ... 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301