________________
..
२३८ ] . महावीर चरित्र.। .. मूर्ति ही हो ॥ २ ॥ जिस देशमें खलता (दुर्मनता; दूसरे पक्षम: खलिहान ) और कहीं नहीं थी, थी तो केवल खेतों में ही थी। कुटिलता (मायाचार; दूसरे पक्षमें टेढ़ापन ) और कहीं नहीं थी, श्री तो केवल ललनाओंके केशों में ही थी। मधुप प्रलाप (मद्य पीनेवालों की वकबाद दूसरे पक्षमें भ्रश्रों का झंगर) और कहीं नहीं था,था... तो केवल कमों में ही था। पं स्थिति ( कीचड़की तरह रहना; दूमरे पक्षमें कीचड़में रहना ) और कहीं नहीं थी, थी तो केवल :: धानके पेड़ों में ही थी । एवं विचित्रता भी शिखिकुल-मयूरोंमें ही : देखनेमें आती थी॥ ३॥ अपने पर लगी हुई नांगलताकी आमासे... या आमाके समान श्याम वर्ण बना दिया है आकाशको जिन्होंने ऐसे सुपारीके वृक्षोंसे चारों तरफसे व्यप्त नगर जहां पर एसे मालूम : पड़ते हैं मानों प्रकाशमान महान् मरकत मणियों-पन्नाओंक पाषाण : बने हुए अत्युन्नत परकोटाओंकी पङ्क्तिते ही वेष्टिन-घिरे हुए हो॥४ माधितननोंकी तृप्णाको सदा दूर करनेवाले, अंतरंगमं प्रशत्ति-निर्मल ताको धारण करनेवाले, अपने तप (कमलोंसे पूर्ण तथा सज्जनों के पसमें : लक्ष्मीसे पूर्ण), निर्मल द्विनों (पक्षियों; सजनोंकी पक्षमें उत्तम वर्णमाले
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यों ) के द्वारा सेवनीय, ऐसे असंख्य सरोवरों से - और सज्जनोंसे वह देश पृथ्वीपर शोभायमान है ॥ ६॥ उस देशमें : - जगत्में प्रसिद्ध कुंडपुर नामका एक नगर है जो अपने समान शोभाके ", "धारक आकाशकी तरह मालूम पड़ता है । क्योंकि आकाश समस्त । ... वस्तुओंके अवगाहसे युक्त है। नगर भी सब तरहकी वस्तुओंसे मा।
हुआ है। आकाशमें भास्वत्कलाधरबुध ( सूर्य चंद्र और बुध नक्षत्र) रहतें हैं; नगरमें भी भास्वान्-तेजस्वी कलाधर-कलाओंको धारण
.