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२४६ ] महावीर नारिन। हो गये हैं हृदय और नेत्र जिसके ऐसे भृपालने मी उस देवीको स्वप्नों के फल क्रमसे इस प्रकार-नीचे लिग्न अनुसार बताये ॥२॥ . ___हन्ती जो देखा है इससे तर तीन भुवनका स्वामी पुत्र होगा । वृप-बैंक सनसे वह घर-धमका का होगा। सिंहके देखनेस सिंह समान पराकमशाली होगा । है माता लक्ष्मीक देखनसे कारण देवगिरिमा-सुमेरपर ले जाकर उसका हर अभिषेक करेंगे ॥ ४२ ॥ दो मालाओंक देखन वह यशाम निवान होगा। हे चन्द्रमुग्वि ! चन्द्रके देखनसे मोहनाका भदनाना होगा। मुर्गक " देखनेसे भव्यरूर कमलों के प्रतिबोधका कर्ता. होगा ! मीन्युगद्र देखनेसे यह अनन्त सुख प्राप्त करेगा ॥ १४ ॥ दो घटोंक देखनेस : मंगलमय शरीरका धारक उत्कृष्ट पानी होगा। सरोवरके देखनसे भीवोंकी तृष्णाको सदा दूर करेगा। समुद्र देखनसे यह पूर्ण नामका : धारक होगा। सिंहासन देखनेका फल यह होगा कि वह अंत में .. उत्कृष्ट पदको प्राप्त करेगा ॥ ४५ ॥ विमान देखनेका अभिप्राय .. यह है कि वह स्वर्गसे उतर कर आयेगा । नागमनक देखका : फल यह है कि वह यहां पर मुख्य तीर्थको प्रवृत्त कंगा । रत्नराशिका देखना यह सूचित करता है कि वह अनंत गुणोंका धारक ... होगा और निघूम अग्निका देखना बताता है कि वह समान कमीकां क्षय करेगा ॥ ४६ ॥ इस प्रकार प्रियसे स्वप्नावलीका यह फल . सुनकर कि वह-फल जिनपतिके अवतारको सूचित करता है : प्रियकारिणी परम प्रमन्न हुई। तथा वसुधाधिपति सिद्धार्थने भी । अपना जन्म सफल माना । तीन लोकके गुरुकी गुरुता किसको प्रमुदित . नहीं कर देती है। ॥ १७॥ अषाढ शुक्ला षष्ठोके दिन जब कि नन्द्र' !