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महावीर चरित्र
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कर भक्तिपूर्वक प्रणाम करते थे ॥ ३० ॥ विकसित है अवधिज्ञानरूप नेत्र जिसका ऐसे सौधर्म स्वर्गके इन्द्रने आठ दिकन्यकाओं को यह यथोचित हुक्म दिया कि तुम जिन भगवान्की यांविनी जननीके पास पहले से ही जीओ ॥ ३१ ॥ जगत में चूड़ामणिकी युति से विराजमान है पृष्णचूला जिसका ऐसी चूलावती और मालिनिका कांता सदा शरीरियोंकी पर्याप्त पुष्पोंसे नम्र नवमालिका के समान दीखनेवाली नवमालिका || ३२ ॥ पीन और उन्नत दो स्तनरूप घटोंक मूरि भारसे खिन्न हो रहा है शरीर और त्रिवली जिसकी ऐसी त्रिशिरा, क्रीड़ावतंस बनाया है कल्प वृक्षके सुंदर पृष्पोंको जिसने तथा पुष्पोंके, प्रहास पृष्पतमान प्रहारसे मुभग पुष्पचूला ॥ ३३ ॥ चित्रांगदा अथवा चित्र हैं अंगद जिसके ऐसी कनकचित्रा, अपने तेनसे तिरस्कृत करदिन है कनक - सुवर्णको जिसने ऐसी कनकदेवी तथा सुभगा वारुणी, अपने नीभूत शिरपर रक्खे हैं अयं हस्त जिन्होंने ऐसी ये देवियां प्रिकारिणी त्रिशलाके पाप्त प्राप्त हुई ॥ ३४ ॥ अत्यंत कांतियुक्त वह एक प्रियकारिणी स्वाभाविक रुचिर- मनोज्ञ: 'आकार के धारण करनेवाली उन देवियोंसे वेष्टित होकर और भी अधिक शोभित होने लगी । तारावलीस वेष्टित अकेली चन्द्रलेखा' भी तो लोकोंके नेत्रोंको आनंद बढ़ाती है || ३५ ॥ निधियोंके -रक्षक तिर्यग्विमण करनेवाले देव कुबेरकी आज्ञा से वहां पर सिद्धार्यं और प्रियकारिणीके यहां पन्द्रह महीने तक प्रतिदिन लोगों को हर्पित करनेके लिये साढ़े तीन करोड़ रत्नोंकी वर्षा करते थे॥ ३६ ॥
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२इस श्लोक "वित्तत्तकुंडल शैलवासाः ' इस शब्दका अर्थ - हमारी समझ में नहीं आया है इस लिये लिखा नहीं है ।