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सोलहवाँ सर्ग |
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होती है, इसी लिये उस अविनर सम्यग्दर्शनको उत्कृष्ट समझ - इसको बड़ी कठिनता प्राप्त कर मकता है ॥ ३ ॥ जिन जीवके सारो ने लिये गुनियोंक द्वारा रोक दिया है पापकर्माका आना जिसने ऐमा चारित्र होता है वही जीव निश्चयले जगतमें विद्वानोंका अग्रगीय है और उसीका जन्म भी मत है | ॥ ४ ॥ अत्यंत मजबूत जमी हुई है नड़ जिनकी ऐसे वृक्षको जिम -तरह महान मतंगज हस्ती शीघ्र ही उड़ाता है उसी तरह अत्यंत कठोर जमा हुआ है नुक जिपका ऐसे मोहको वह जीव शीघ्र ही नष्ट कर देता है जो कि सम्मति युक्त हैं -11-4 | जिप्रकार सरोवर मध्यमें बैंठें हुए मनुन्यको अन्नि नहीं मंत्र की टसी प्रकार शान्ति करनेवाला और पवित्र ज्ञान जंक जिसके हृदयमें मौजूद है उसको, समस्त जानार कर लिया है आपण जिसने ऐसी मी कामदेवकी अभिजा नहीं मस्ती है ॥ ६ ॥ संयमपन पर हुए निमंत्र प्रशमरूप हथियारको दिये हुए अत्यंत पहरे हुए और शीरूप योद्धाओं - अङ्गरक्षकों द्वारा सुरक्षित नुनिरानके
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सामने समीचीन तपञ्चरणरूप रणमें पापकर्मरूप शत्रु उद्धत हैं तो मी उह नहीं सकता है । जो garm se
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हैं उनको दुर्जय कुछ नहीं है || ७-८ ॥ इन्द्रिय और मनको जिसने अच्छी तरह वशमें ॠ लिया है, जिसने प्रशनके द्वारा मोहकी सम्पत्तिको नष्ट कर दिया है, जिनका चारित्र दीनासे रहित हैं, ऐसे मत्युको इमी लोकमें क्या दूसरी मुक्ति मौजूद नहीं है ? ॥ ९ ॥ जो योद्धा युद्धक मौके पर मयसे वित्र हो जाता है