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महावीर चरित्र |
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गतिका निश्चय करानेके लिये जो हेतु दिये हैं उन पूर्वोक्त चारों हेतुओंका दृढ़ निश्चय करानेके लिये कपसे चार समीचीनं दृष्टांत. दिये हैं, वे ये हैं-घुमाया हुआ कुंभारका चाक, लेपरहित तूंबी, ऊंडीका बीन, और अग्निकी शिखा । भावार्थ-संसार अवस्थामें जीव जिस प्रयोग के द्वारा गमन करता था उसी प्रयोगंके द्वारा घूमता है उस प्रयोगके संसारसे छूटने पर भी गमन करता है । जैसे कुंभारका चाकु प्रारम्भ में जिस प्रयोगके द्वारा निमित्तके हट जाने पर डंडा आदिके दुरकर लेने पर भी पूर्वं प्रयोगके द्वारा ही घूमा करता है । दूसरा हेतु असंगता है जिनका उदाहरण लेपरहित तूंत्री है । अर्थात् जिस 'तरह तूंच के ऊपरसे मट्टीका लेप दूर कर दिया जाय तो वह निश्मसे नलके ऊपर ही जाती है उसी तरह शरीरसे रहिन होनेपर "आत्मा नियमसे ऊपरको ही गमन करता है। तीसरा हेतु कमसे छूटना है जिसका उदाहरण अंडीका बीज बताया है। इसका अभि प्राय यह है कि जिस तरह अंडीका बीजं गवामेंसे फूटकर जब निकलता है तब नियमसे ऊपरको ही जाता है उसी तरह कर्मोसे 'छूटने पर जीव मी ऊपरको ही जाता है। चौथा हेतु ऊर्ध्वगमन करनेका स्वभाव बताया है fear दृष्टांत अग्निat शिखा है । इसका भी अभिप्राय यह है कि जिस तरह बिना किसी प्रतिबंधक कारण अनिकी शिला स्वभावसे ही ऊपरको गमन करती है उसी तरह जीव भी प्रतिबंधक कारणके न रहने से स्वभावसे ही ऊपरको “गमन करता है ॥ १९० ॥ सिद्धिका है सुख जिनको ऐसे पूर्वोक सिद्ध भगवान् लोकके अंत तक ही क्यों जाते हैं उसके आगे भी चयों नहीं आते ? इसका उत्तर यह है कि लोकके आगे. धर्मास्ति
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