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महावीर चरित्र ।
यह दश प्रकारका बताया है । मनःस्थितिकी शुद्धिके लिये जो निरंतर ज्ञानका अभ्यास करना इसीको राम और सुखरूपं स्वाध्याय कहते हैं जो कि पांच प्रकारका माना है ॥१३९॥ ' इसका स्वामी हूं ' ' यह मेरी वस्तु है' इस प्रकारकी अपनी संकल्प बुद्धिके मले प्रकार छोड़नेको जिनेन्द्र भगवान्ने व्युत्सर्ग' बताया: है | यह दो प्रकारका है । अत्र इसके आगे मैं प्रभेदोंके साथ. व्यानका वर्णन करूंगा ॥ १४० ॥
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पूर्ण ज्ञानके धारक जिनेन्द्र भगवान्ने एकाग्र एक वयमं चिंता विचारके रोकनेको ध्यान कहा है। इसमें इतना और समझ किं. संहननवालेके भी यह अंतर्मुहूर्त तक ही हो सकता है । इम". ध्यानके चार भेद हैं ||१४१ || हे नरनाथ ! वे चार भेद इस प्रकार ' बताये हैं- आर्त्त, रौद्र, धर्म्य, शुक्ल; इनमें आदिके दो ध्यान संसारके कारण हैं और अंतके दो ध्यान स्वर्ग तथा मोक्षके कारण. ॥१४२॥ अतिध्यान मी चार प्रकारका समझो । अनिष्ट वस्तुका संयोग होनेपर उसके वियोगके लिये निरंतर चिंतंवन करना. यह पहला - अनिष्ट संयोग नामका आर्त्तध्यान है । इष्ट.. वस्तुका वियोग होजानेपर उसकी प्राप्तिके लिये चितवन : करते रहना यह इष्ट वियोग नामका दूसरा अतिध्यान है। अत्यंत बढ़ी हुई बेदनाको दूर करनेके लिये निरंतर चितवन करते
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रहना यह तीसरा वेदना नामका अतिध्यान है। इस प्रकार निदान - आगामी मोगोंकी प्राप्तिका संकल्प करनेके लिये निरंतर चितवन करते रहना यह निदान नामका चौथा आर्त्तिध्यान है। इस अध्यानकी उत्पत्ति आदिले - प्रथम गुणस्थान से लेकर छह गुणस्थानोंमें
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