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२१६ ] ___ महावीर चरित्र। ..
Annararamma राजन् ! तीसरे चारित्रका नाम परिहार विशुद्धि जान । समस्त प्रा-: णियोंके बधसे अत्यंत निवृत्तिको ही परिहार विशुद्धि कहते हैं । ॥ १२८ ॥ हे नरेश ! चौथे अनुपम:चारित्रका नाम सूक्ष्मसापराय: समझ । सत्पुरुष इस नामको अन्वर्थ बताते हैं। क्योंकि यह चारित्र कषायके अति सूक्ष्म होजानेपर होता है ॥१९९॥ जिन भगवान्ने .. पांचवें समीचीन चास्त्रिका नाम यथाख्यात कहा है। यह चारित्र . मोहनीय कर्मके उपशम या क्षणसे होता है। और इसीके द्वारा आत्मा अपने यथार्थ स्वरूपको प्राप्त करता है ।। १३० ॥ ... ___ हे राजन् ! अब तू तपका स्वरूप समझं । यह तप. सदा दो .. प्रकारका माना है-एक बाह्य दूसरा अभ्यंतर । इनमें भी प्रत्येक नियमसे छह छह भेद माने हैं । उक्त दो भेदोंके जो प्रभेद हैं : उनका भी मैं यहां संक्षेपसे वर्णन करूंगा ।। १३१ ॥ रागको शांत - करनेके लिये, कर्मसमूहको नष्ट करने के लिये दृष्ट फल मनोहर हो : तो भी उस विषयमें अनपेक्षा-लालसारहितपने के लिये, विधिपूर्वक : ध्यान तथा आगमकी प्राप्तिके लिये, और संयमसंपत्तिकी सिद्धिक: लिये जो धीर भक्तिपूर्वक अनशन करता है वह बुद्धिमान् इस एककें : द्वारा ही दुष्ट मनको वशमें कर लेता है ॥ १३२ ॥ ‘जागरणके : लिये-निद्रा-प्रमाद न आवे इसलिये, बढ़े : हुए दोपोंकी शांतिके : लिये, समीचीन संयमके निर्वाहके लिये, तथा सदा स्वाध्याय और संतोषके लिये उदार बोधके धारक भगवान्ने अवमौदर्य-उनोदर तप बताया है ।। १३३ ॥ एक मकान आदिकी अपेक्षासे-आज... एक ही मकानमें भोजन करनेको जाऊंगा, आज इस प्रकारका भोजन : मिलेगा तो भोजन करूंगा, आन ऐमा बनांव बनेगा तो मोंजन क..