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तेरहवां सर्ग। [ १८३ स्फुलिंगोको बखेर रहा है ॥६५॥ अभिमत-प्रियका स्थान
दूर था तो मी वहांवर मदिराक्षीको मार्ग बतानेमें अत्यंत दक्ष और • मनोज्ञ चंद्रिकाने प्रिय रसकी तरहसे विना किसी तरह खेदके पहुंचा दिया ॥.६७॥ युराको दृष्टिमार्गमें आकर नम्र होते ही न कुछ देर में प्रयत्न पूर्वक सम्हाली हुई भी रमणियोंकी मानसंपत्ति भृकुटीकी तरह वस्त्र के साथ साथ ढीली पड़ गई ॥६८॥ सखियोंमें 'बिना कुछ कहे ही या इस हेतुसे कि कहीं सखियोंमें निंदा न हो जिसने दोष-अपराध किंा था ऐसे प्रियके प्रास भी मदिरा-नदसे उत्पन्न हुए मोह-नशेके छलसे शीघ्र ही चली गई। प्रेस किसके. मायाको. उत्पन्न नहीं कर देता है ! ॥ ६९ ॥ बल्लमको सदोषसापराध देखकर पहलेसे ही कुपित हुई भी किसी कामिनीने संभ्रम नहीं छोड़ा। स्त्रियों का हृदय नियमसे अत्यंत गूढ़ होता है ।।७०|| . वेश्या हायमें बिल्कुल दूसरे पर आशक्त थी तो भी धनिक कामुके इस तरह वशमें होगई मानों इसीर आशक्त है। धन किसको वशमें नहीं कर लेता है ? ॥ ७१ : ... इस प्रकार कामदेवके वश हुए कामयुगों-धर्म, अर्थ, पुरुषार्थों
के साथ साथ खिले हुए कमल समूहके समान है श्री-शोमा जिसकी ऐसे राजाने प्रियाके साथ चंद्रमाकी किरणोंसे निर्मल और रम्य 'महलमें रात्रिको एक क्षगकी तरह विजा दिया।। ७२ ॥ धीरे धीरे 'नाकर विस्तीर्ण करोंसे ( फैली हुई किरणोंसे दूसरा अर्थ हाथोंको ..फैलाकर) लोल-चंचल हैं । तारा ( नक्षत्र, दूसरा अर्थ आंखकी पुतली) जिसके ऐसी प्रतीची-पश्चिम दिशाका चंद्रपाके आलिंगन करते ही.यामिनी-रात्रिने मानों कुपित हो करके ही झटसे कुमुद