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तेरहवां सर्ग। [१८५ दिवसलक्ष्मी अति रक्त ( लाल रंगवाला; दूसरे पक्षमें आशक्त) धीरे धीरे प्रकट होकर पूर्व प्रकाशित कर' (पूर्व दिशामें फैलाया है किरणोंको जिसने दूसरे पक्षमें पहलेसे फैलाये हैं हाय जिसने ) ऐसे इस सूर्यका इस तरहसे आलिंगन करती है जैसे कोई मानिनी युचाका आलिंगन करे. ।। ७९ ॥ इस प्रकार मागधों-चंदीगणों के वचनोंसे-वचनोंको सुनकर उसी समय निद्राका परित्याग कर वह गाना-कामदेवकी फांसकी तरह.गलेमें पड़ी हुई प्रियाकी दोनों बाह लताओंकों मुफलसे अलहदा करता हुआ सोनेके स्थानसे उठा ॥८०॥ - इस प्रकार, स्फटिक समान निसल, अखंड-निरतीचार श्रावक बतोंको तथा राज्यलक्ष्मीको धारण करनेवाले उस नग्नाथपति-राजराजेश्वरके अनेक संख्यांयुक्त वर्ष सुखपूर्वक वीत गये ॥ १ ॥ तब एक दिन यह सेना प्रमद वनमें विराजमान सुरतिष्ठ नापक मुनिराजको देखकर तपोवन होगया । और प्रशममें रत रहता हुआ चिरकाल तक तपस्या करने लगा ॥ ८२ ॥ विधिक जाननेवाले इस प्रसिद्ध मुनिने आयुके अंत में विधिपूर्वक सल्लेखनाको धारण करके अपनी कीर्तिसे पृथ्वीको और मूर्तिसे-शरीरसे या आत्मासे महाशुक्र
वर्गकों अलंकृत. किंग ॥ ८३ ॥ अनला हैं मान--प्रमाण जिसका : ऐसे प्रीतिवर्धन विमानमें पहुंचकर सोलह सागरकी आयुका धारक
देव हुआ । इसकी सूप-संपत्ति दिव्यः अंगनाजोंके मनका हरण करनेवाली थी। वहांपर विचित्र -अनेकप्रकारके सुखोंको भोगता हुआ रहने लगा ।। ८४ ॥ .. . . .
इस प्रकार अशर्ग कवि कृत वर्धमान.चरित्रमें हरिषेण महाशुक्र :.. गमनो' नाम .तेरहवां सर्ग समाप्त हुआ।