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२०० ] महावीर चरित्र । आस्रवका कारण बताते हैं ।। ३८ ॥ गर्व न करना, मन्दकपायता, , स्वदारसंतोष आदि गुणोंका होना, इन बातोंको समस्त तत्वों ज्ञाता भागवानने सत्पुरुषोंको पुरुष वेदनीय , कर्मक आत्रम . कारण बताया है ॥ ३९ ॥ सदा कपायोंकी अधिकता रखना, दूसरोंकी गुह्येन्द्रियोंका छेदन करना, परस्त्रीसे गमन-व्यभिचार करना इत्यादिकको आर्य तीसरे-नपुंसक वंदनीय कर्मके आन्त्रक कारण बताते हैं।॥ ४०॥ बहुत आरम्भ और परिग्रह रखना, अतुल
हिंसा क्रियाओंका उत्पन्न करना, रौद्रध्यानसे मरना, दूसरेके धनका . हरण करना, अत्यंत कृष्ण लेश्या, विपयोंमें तीव्र गृद्धि, ये सम्पूर्ण
ज्ञानरूप नेत्रके धारक और मत्र जीवोंक हितेपी भगवन्ने नरक . आयुके अस्त्र के कारण बताये हैं ॥ ४१ ॥ विद्व नामें श्रेष्ठ आचायोने प्राणियोंको तिर्यग्गति सम्बन्धी आयुके अस्त्राका कारण मागा बताई है। दूसरेको ठगनेके लिये दक्षता केवल निःशीलता, मिथ्या. स्वयुक्त धर्मके उपदेशमें रति-प्रेम, तथा मृत्यु समयमें आतिशान, और नील कापोन ये दो लेश्शायें, ये उस मायाके ही भेद हैं ॥ ४२ ॥ अल्प आरम्भ और परिग्रह मनुष्य आयुके आत्रामा कारण बताया है । मन्द पायता, मरणमें सक्लेश आदिका न होना, अत्यंत भद्रता, प्रगुण क्रियाओंका व्यवहार, स्वामाविक प्रश्रय, तथा . शील और 'ब्रतोंसे उन्नत स्वभावकी कोमलता, ये सब उस कारणके विशेष भेद हैं ॥ ४३ ॥ सरागसंयम संयमासंयम अामनिरा बाल ता इनको ज्ञानी पुरुष देवायुके आत्राका कारण बताते हैं और '
उदार कारण सम्यता भी है ।। ४४॥ योगोंकी अत्यंत वक्ता ___ और विवाद-झगड़ा आदिक करना, अशुभ नाम. कर्मके आखरका :