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महावीर चरित्र ।
चौदहवाँ सर्ग |
इसी जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहमें सदा मनोहर ऐसा कच्छ नामका एक देश है । जो कि सुरसरित सीताके परिचय-तटको अपनी कांतिके द्वारा प्रकाशित कर प्रकट रूपसे अवस्थित है ॥१॥ पृथ्वी तलको भेदकर उठ खड़ा हुआ लोक है क्या? अथवा, क्या देवताओंका निवास स्थान स्वर्ग पृथ्वीको देखनेको आया है ? इस प्रकार इन नगरीकी महती शोभाको देखते हुए स्वयं देवगण भी क्षणभरके लिये विस्मेय- आइचर्य: करने लगते हैं ||२|| इस देशमें क्षेपति नामको धारण करनेवाला नगर है जो ऐमा मालूम पड़ता है मानों तीनों लोक इकडे. हो गये हों। यह नगर सद्वृत्त - बिल्कुल गोल या सदाचार प्रकृति से युक्त विभिन्न वर्णोंसे व्याप्त, और पृथ्वीके तिलकके समान था ॥ ३ ॥ नीतिको जाननेवाला जिसने शत्रुओंको नमा दिया है ऐसा धनंजय नामका राजा उम नगरका स्वामी था । जिसने अति चपल लक्ष्मीको भी वश में कर लिया था। महा पुरुषोंको दुःष्कर कुछ भी नहीं है ॥ ४ ॥ इस राजाकी ईषत् हासयुक्त है मुखं जिसका तथा सकल चलाओं में दक्ष है बुद्धि जिनकी ऐसी कल्याणीकल्याण करनेवाली प्रभावती नामकी प्रसिद्ध रानी थीं। जो ऐसी मालूम पड़ती थी मानों उज्जाका हृदय हो, अथवा कामदेवकी अद्वितीय विजयपताका हो || ५ || श्रेष्ठ स्वप्नोंके द्वारा पहले से
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सुचित कर दी है चक्रवर्तीकी लक्ष्मी जिसने ऐना वह देव उ स्वर्ग से - महाशुक्र नामकं दशर्वे स्वर्गसे पृथ्वीपर उतरकर इन दोनोंके
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