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. . बारहवा:सर्ग
[ १६३. प्रसन्नचित्त) रहते थे। वुधों-विद्वानों का कुल अत्यंत अप्रमाण (अविश्वस्त, इलेक से दूसरा अर्थ आणि1) था । अनिष्ट (दूमरा अर्थइच्छा-लोमागद्वेपसे रहित.) कोई थे तो यति हो थे। परलोकमीरु (दूसरे लोकोंते याःपरराष्ट्रसे डरनेवाला; दूमा अर्थ परमोंनरकादि पर्यायोंसे डरनेवाला) कोई था तो वह योगक्रियाओंमें दक्ष . कुशल था..११ ।। इस नगरकी रमणियोंकि मुखकमलोंपर भ्रारोंकी “पंक्ति उनके शासके-श्वासमें जो सुगंधि है उमके लोमस पड़न लगती है । जव स्त्रियां उनको भ्रमरों को अपने हाथोंसे उड़ाने लगती हैं तब वे अपने मनमें "ये तो ल ल कमल हैं" ऐसी शशा करके हर्षित होकर उनके हाथोंकी ताफ भी झपटने लगते है।॥ १२ ॥ . . . , इन. नगरका रक्षक निसने प्रनाका पालन करनेमें कीर्ति प्राप्त की है ऐमा धीर विनीत (विनयस्वभाववाला) और नीतिोताओं तथा सत्पुरुषोंका अग्रणीय कनकाम नापका राना था ॥ १३ ॥ ."अत्या चंचला मुझको भी इसकी तीक्ष्णधार वहीं काट न डाले।" इसी. भगसे मानों विनय-लक्ष्मी उस राजके शरदऋतुके आकाशके समान-श्यामं रुचि-कान्तिवाले खड्ग.निश्वल हो कर रहने लगी
.१४ ॥ शूरताकी निधि यह राजा. युद्धमें मयसे म्लान हुए 'पुरुषोंके मुखोंको नहीं देखता है यह समझकर ही मानों उसके
प्रतापने शत्रुओंको सामनेसे हट दिया था ॥ १६ ॥ नित्य उदय• वाला भूमिभूतों ( रानाओं; दूसरे पक्षमें पर्दतों) शिरपर निसने
अपने पाद (चरण; दूसरे पक्षमें किण ) रख रखे हैं, कमला. लक्ष्मीका अद्वितीय स्वामी, इस प्रकार यह राना विग्मरशि