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१७६ ] महावीर चरित्र । ....... . (जिसका सद-राक्रम अनंदित है; दूमरे पक्षमें अनंदित है सन-प्राणी जिसमें अथवा सारभूत रत्नादिकं जिसमें) बहुतसे सारा गुणोंके. एक-अद्विनीय समुद्रके समान इस पुत्रको रानविद्याएं . नदियोंकी . तरह स्वयं आ आकर प्रप्त हुई ॥ २०॥ . . .....
इसी तरह कुछ दिन बीत जानेपर एक दिन पुत्र सहित राना वज्रसेनने श्रुतसागर नामके मुख्य मुनि-आचार्यसे: धर्मका स्वरूप सुना । जिससे वह विषयोंमें बिलकुछ निःस्पृह हो गया ॥२१॥ . पृथ्वीतलका नो भार था उसके- आर. आंसुओंकी कणिकाओं व्याप्त हो गये हैं नेत्र जिसके ऐसे पुत्रको नियुक्त कर राना उन मुनि महारानके निकट में मुनि हो गया। जगतमें जो मय होता है वह संपारसे डरा करता है ।। २२ ।। पूनिन्ममें निसका अभ्यास किया था उस सम्पग्दर्शनके द्वारा निम हो गया है. चित्तनिसका ऐसे हरिषेणने श्रावकों के सम्पूर्ण वनों-बारह व्रतोंको धारण किया। श्रीमानोंका अविनय बहुत दूर रहता है ॥ २३ ॥ .जिस प्रकार : सरोवरमें रहते हुए भी कमल कीचके लेशसे भी लिप्त नहीं होता है उसी.तरह पापके निमित्तभून राज्यपर स्थित रहते हुए भी उससे : पापने स्पर्श न किया । क्योंकि उसकी प्रकृति शुचि-वित्र और संग (मूळ-ममत्वपरिणाम; दूसरे पक्षमें जलका संसर्ग) से रहित थी । ॥२४॥ चारों समुद्रोंका तट जिसकी मेखला है ऐसी बहुमती-- . थ्वीका शासन करते हुए भी इस रानाकी बुद्धि यह आश्चय,
है कि प्रतिदिन समस्त विषयोंमें निस्गृह रहती थी ॥२५॥ : यौवन-लक्ष्मीके धारण करते हुए भी. उसने नियमसे : : : शांत वृत्तिको नहीं छोड़ा जगत्में जिसकी बुद्धि कल्पाणकी तरफ :