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बारहवां सगँ ।
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[ १६५ - रीति से गमन करते हुए इस राजकुंपारको देखकर नगरनिवासियोंके नेत्र अत्यंत निश्चल होजाते थे । वे उसके विषय में ऐसी तर्कणाकरने लगते थे कि 'क्या यह मूर्तिमान् कामदेव है ? या तीन लोकके रूप सौंदर्यकी अवधि है ? ॥ २३ ॥ जिस तरह खंजन में (?) फसर अत्यंत दुर्बल गौ वहांसे चल नहीं सकती उसी तरह नगर निवासिनी सुंदरियोंकी नीलकमलकी श्री - शोभाके समान रुचिर - मनोज्ञ और सतृष्ण कटाक्ष संपत्ति उस कुमारके ऊपर पड़कर फिर हट नहीं सकती थी ॥ २४ ॥ जिस तरह चुम्बक लोहेकी चीजोंको खींच लेता है, ठीक ऐसा ही इस कुमारके विषयमें भी हुआ । 'विद्याधरोंकी कन्याओंके विषयमें यह निरादर था - यह उनको नहीं
चाहता था। तो भी अपने विशिष्ट शरीरके द्वारा दीतियुक्त इसने ..उनके हृदयोंको अपनी तरफ खींच लि॥ ॥ २९ ॥ जिस तरह एक चोर छिद्रको पाकर भी जागते हुए धनिकसे दूर ही रहता है उसी तरह चढ़ा हुआ है धनुप जिसका ऐसा कामदेव अप्रमाण गंभीरता गुणके धारक इस कुमारके रन्ध्र का प्रतिपालन कर दूर ही रहता था । २६ ॥ • पिता की आज्ञानुसार स्फुरायमान है प्रमा निमकी ऐसी कनकप्रमाके योग सम्बन्धको पाकर उससे विवाह करके प्रजाके संतापको दूर करनेवाला यह राजकुमार ऐसा मालूम पड़ता था मानों बिजली सहित नवीन मेघ हो ॥ २७ ॥ दोनों वर वधुओंने अपनी मनोज्ञताके द्वारा परस्परको बिल्कुल अपने अपने वशमें कर लिया था । प्रि-वस्तुओं में जो प्रेमरस उत्पन्न हो । है वह चारुता - रमणीयताका प्रधान- फल है । २८ ॥ अनल्प - महान खारीपनकी विशेष लक्ष्मीशोभा या खारीपन और विशेष लक्ष्मीको धारण करनेवाली समु
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