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दसवां सर्ग | [ १३९ कोई था तो पादप-वृक्ष ही था । सुमनोनुवर्तियोंमें (पुष्पोंका अनुवर्तन करनेवालों में दूसरे पक्षमें विद्वानोंके अनुवर्तन करनेवालोंमें ) कोई मैधुप्रिय ( जिसको पुष्परस पराग-प्रिय हो ऐसा; दूसरे पक्ष में मद्य जिसको प्रिय हो ऐसा ) था तो एक भ्रमर ही था । भोगियों में ( भोगेवालों में ) स्फुरायमान द्विह्निना ( दो जीमों) को धारण करनेवाला कोई विद्वानोंको प्राप्त हुआ तो अहि-सर्प ही प्राप्त हुआ ॥ २४ ॥ गुणैवानों में केवल हार ही ऐसा था जो सुवृत्तमुक्तात्मकता ( बिलकुल गोल मोतियोंको; दूसरे पक्षमें सदाचारसे शून्यता ) को निरन्तर धारण करता था । सुजातरूपों ( मुनियों; दूसरे पक्षमें सोनेकी चीजों ) में मणिमय मेखला गुण ही ऐसा था जो सदा दूसरोंकी स्त्रियोंको ग्रहण करता था || २५ || कामुक - कामियोंमें एक: कोक पक्षी ही ऐसा था जो रात्रिके समय प्रियाके वियोगकी यथासे कृश हो जाता था । वहां पर और कोई दुर्बल न था यदि कोई था तो नितंविनियका कुच भारसे पीडित मध्यभाग था जो कि दुर्बलता के मारे नम गया था ॥ २६ ॥ इस प्रकार प्रजामें प्रतिदिन उत्कृष्ट स्थितिको विस्तृत करता हुआ फैलाता हुआ बड़े संभ्रमसे या शत्रुओंके संभ्रम से रहित अच्युत रत्नाकरके जलकी जिसके मेखला है. ऐसी पृथ्वी की एक नगरीकी तरह रक्षा करता हुआ ||२७||
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'इस तरह कुछ दिन बीत जाने पर स्वयंप्रमाने क्रम क्रमसे, दो पुत्र और एक कन्याका प्रसव किया। मानों त्रिपिटको प्रसन्न
१- भोग शब्द के दो अर्थ हैं - एक विलास दूसरा सांपका फण । २ - गुण शब्दकें भी दो अर्थ है-एक औदार्य प्रताप आदि गुण; 'दूसरा सुत-डोरा ।
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