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१४६. J. . . महावीर चरित्र । - पतियों में प्रेमके कारण नो उचित दुमरें दूसरे गुण बताये हैं अर्थात् जिनसे स्त्रियों को पतियों में प्रेम होता वे गुण इन सबसे मिन्न ही . हैं ।। ६७ । इसलिये स्वयं कन्या ही. स्वयंवर में अपने अनुरूप .. वरको अपनी बुद्धिसे वर ले। यह विधि चिरकालसे बहुत कुछ. . प्रवृत्त हो रही है। उनकी की हुई यह विधि सफल नाको प्राश, होओ" ॥ ६८ ॥ इस प्रकार कहकर और उदार बुद्धियों-मंत्रि-. योंसे दुसरे कामके विषयमें विचार करके बलभद्र चुर हो गये। तब नारायणने मंत्रियों के साथ साथ "ऐसा ही ठीक है । इस तरह. बलभद्रके कथनको स्वीकार कर अपने दूतों द्वारा दिशाओं में स्वयंबरकी घोषणा करा दी ।। ६९ ॥
अर्ककार्ति स्वयंवरकी बात सुनकर सहसा-शीघ्र ही पुत्र । अमिततेनको और मनोराङ्गी पुत्री ती सुताराको लेकर विद्याधरोंके . साथ साथ पोदनपुरको आया !!७०il चारो तरफके प्रवेश देशोंमें . अर्थात् नगरके बाहर किंतु पाम ही च.रोतरफ रानाओंके सिविरोंसे. . तथा स्वयंवरोत्सदकी उड़नेवाली ध्वनाओंसे परिष्कृत नगरको पाकर नगरमें पहुंचकर जहां भीड़ लगी हुई है ऐसे राजदरबार में पहुंचा... ॥७१॥ लताओंका जो तोरण बना हुआ था उसके बाहरसे उत्सुकताके । साथ उन्नत या उदयको प्राप्त बलभद्र और नारायणको देखकर उन : दोनों ही साम्राज्य कर्त्ताओंके चरणयुगलको पहले नमस्कार किया। उन दोनोंने भी उसका आलिंगन कर सत्कार किया ।। ७२ ।। अपने . पैरों में नमस्कार करते हुई अर्ककीर्तिके उस पुत्र अमिततेनको देखकर तथा मनोहरताकी सीमा अपनी कांतिसे नाग कन्याको जीतने.' वाली पुत्रीको देखकर उन दोनोंके नेत्र . आश्चर्यसे निश्चंत होगये,