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महावीर चरित्र ।
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अचित्य बलवीर्य और युद्ध कौशलको देख कर खिन्न होता हुआ .. कोई मनसे ही इस तरहके संदेहके झूला में झूलने लगा कि इन दोनों .. में से कोई जीतेगा भी या नहीं ! ॥ ७८ ॥ जिप तरह हाथीवान के चल वीर्यकी पहचान अधीर-मत्त हाथी पर ही होती है उसी तरह विद्याधरों - सात सौ विद्याधरों को जीतनेवाले बलदेव - विजयका बल और वीर्य भी समान पराक्रमके धारक उप नील रथ पर ही प्रकट .: हुआ || ७२ || जैसे क्रुद्ध सिंह मत्त हस्तीको मृत्युगोचर बनाता है उसी तरह बलभद्र भी अपने सिवाय दुसरेसे असाध्य - अजय नील रथको युद्ध में अपने हलसे शीघ्र ही मृत्युगोचर बनाया ॥ ८० ॥ प्रतिपक्षियोंके द्वारा प्रधान प्रधान विद्याधर मारे गये। यह देखकर धीर चीर अग्रवने बांये हाथमें धनुषको और हृदय में शुग्ताको धारण किया ॥ ८१ ॥ और बलभद्रादिक जितने दूमरे थे उन सबको "छोड़ कर " प्रभून बलका धारक वह त्रिपिष्ट कहां है ? कहाँ है ? : यह है कहाँ ? " इस तरह पूछता हुआ पूर्व जन्मके कोपसे हाथीपर चढ़ा हुआ उसके सामने जा खड़ा हुआ || ८२ ॥ अमानुष -देवतुल्य आकारके - शरीरके धारक त्रिपिष्टको देखकर उसने समझ लिया कि यही लक्ष्मीके योग्य मेरा शत्रु है और कोई नहीं । जो अधिक गुणोंका धारक होता है उसपर किसको पक्षपात नहीं हो जाता ! ॥ ८३ ॥ वाण छोड़ने की विधि जाननेवाले चक्री अन ग्रीवने वक्र -टेढ़ी पड़ नानेवाली उतङ्ग कमानकी डोरीपरसे जिनका अग्रभाग वज्रका है ऐसे अनेक प्रकारके विद्यामयी अनेक अत्यंत दुर्निवार बाणोंको चारोतरफ छोड़ा ॥ ८४ ॥ पुरुषोत्तमने अपने शार्ङ्ग' धनुष परसे छोड़े हुए वाणसे उसके बाणोंको बीचमें ही
१ नारायणके धनुषका नाम शार्ङ्ग है।
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