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महावीर चरित्र ।
यार्द्धकी अभीष्ट उत्तर श्रेणीको नारायणके प्रसादसे पाकर रंगनूपुरका स्वामी ज्वलननटी कृतार्थ - कृतकृत्य हो गया । पुरुषोत्तमके आश्रित रहनेवाला कौन वृद्धिको नहीं प्राप्त होता है ॥ ६ ॥ "तुम विजयाचे वासियोंके ये स्वामी हैं | आदरसे इनका ही हुकुम उठाओ - भक्तिसे इनकी आज्ञानुसार लो।" यह कहकर स्वामीने उचलनमटीके साथ साथ विद्याधरोंको क्रमले सम्मानित कर विदा किया ॥ ७ ॥ बलभद्र के साथ साथ सम्राट् त्रिपिष्ट प्रजापतिले यथायोग्य अभिवादन आदि करते हुए विदा लेनेशले ज्वलनजटी के चरणोंपर पड़े। ठीक ही है-क्ष्मी सत्रुपको विनय दिया करती है || ८ | प्रणाम कर नेके कारण नमे हुए मुकुटके अग्र मागसे दोनों चरण कमलोंको पीडित करनेवाले उस अर्क कीर्तिको हर्पसे दोनों पान - विनय और त्रिपिष्टने एक साथ आलिंगन कर अपने तेजसे विदा किया ॥९॥ विद्याधरोंके स्वामी उम ज्वलनजटीने वायुवेगा रानीके साथ २ पुत्रीको सतियोंके उत्कृष्ट मार्गकी शिक्षा देकर वारवार उसके नेत्रोंको जिनसे आंसू वह रहे थे अपने हाथसे पौंछकर प्रयाण. किया ॥ १० ॥
सोलह हजार नरेशों और किंकर की तरह रहनेवाले देवताओंसे युंक्त त्रिपिष्ठ नारायण कमनीय मूर्तिके धारण करनेवाली आठ हजार रानियोंके साथ साथ हमेशह रहने लगा ॥ ११ ॥ अभिलापाओके भी बाहर विभूतिके धारण करनेवाले अपने बन्धुवर्गके पति अपने मनके अनुकूल वर्ताव करनेवाले उस पुत्र के इस तरहके साम्राज्यको देखकर अत्यंत प्रसन्न हुआ ॥ १२ ॥ वह नारायण राजाओंके और विधाघरोंके मुकुटोंपर अपने दोनों पैरोंके नखोंकी
साथ. प्रमा