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सोतवां सर्ग।
[९३ प्रसादसे ही प्राप्त किया है। यह बात पृथ्वीपर प्रसिद्ध है कि. पद्म-कमलं तो सदा जडात्मक (कमलको पक्षमें जलस्वरूा, मंत्रीकी पक्षमें जहरूप) ही होता है, किंतु सूर्यके प्रसादसे वह प्रबोध. (कमलकी पक्षमें खिलना, मंत्रीकी पक्षमें ज्ञान )को प्राप्त होता है।
॥ हिमके समान युतिको धारण करनेवाले चंद्रमाकी प्रतिविम्बकी संगति करनेवाला मृग मलिन है तो भी प्रतिमासित होता है। इसक्न कारण.यही है कि वह नो कुछ भी प्रकाश करता है सो स्वभावसे शुचिताको पाकर ही करता है ।। ९॥ जो जड़ है वह भी उपाधि विशेषके पानानसे चतुरताको पानाता है। जरासा पानी तलवारको पाकर हस्तियोंक कठिन मतकको भी काट डालता है ।। १०॥ .
आप सरीखे बचन-कुशल पुरुषोंके सामने जो मैं बोलता हूं सो यह . अधिकार प्राप्त पदकी (मंत्रिपदकी) चपलता है। अन्यथा कौन ऐसा . सचेतन है जो आपके सामने बोलनेका प्रारम्भ भी कर सके ॥११॥
निस तरह परस्परमें मिली हुई एवं उन्नत तीनों पर्वोंने इस चराचर (जीव और अजीवकै समूहरूप) जगत्को धारण कर रक्खा है उसी . '. तरह अति प्रभावशाली और प्रतिभाके धारण करनेवाले आप
तीनोंने भी नीति शास्त्रको धारण कर रक्खा है ॥१२॥ श्रोता यदि 'निर्वाध है तो उसके सामने बोले हुए वचन चाहे वै सम्पूर्ण दोषोंसे · रहित ही क्यों न हों शोमाको नहीं पाते । यदि स्त्री नेवरहित
पतिके सामने अपना विभ्रम-विलास दिखावे मी तो उससे फल क्या ? ॥१३॥ नीतिकारोंने यह स्पष्ट बताया है कि पुरुषका उत्तम भूषण परमार्थ है। और वह परमार्थ श्श्रुतज्ञान ही है दूसरा नहीं। श्रुतका
. धनोदधिवान् धनवान तनुवान ।