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'छट्ठा सर्ग .
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जहांपर कि छोटे २ राजकीय मकान बना दिये गये थे और जहांपर घास लकड़ी तथा नल सुलभता से मिल सकता था, ठहरा कर भाप भी दूसरोंका पालन करता हुआ ठहर गया ॥ ६७ ॥
ज्वलननटीने सभामें एक बुद्धिमान हूतके द्वारा अश्वग्रीव की इस निरंकुश चेष्टाको स्पष्टतया सुना। और सुनकर वह प्रजापतिसे विनयपूर्वक इस तरह बोला ॥ ६८ ॥ रौप्यगिरि - विजयाधकी उत्तर श्रेणी में वैबसे भूपित नाना समृद्धिशाली अलका नामकी नगरी है। जिसमें मयूरकंठ और नीलांजनाके शरीरसे यह अर्धचक्रवर्ती अश्वग्रीव उत्पन्न हुआ है ॥ ६९ ॥ अश्वग्रीवका वीर्य पराक्रम दुर्निवार्य हैं । इस समय वह दूसरे विद्याधरोंको साथ लेकर उठा है। अतएव इस विषय में अब जो कुछ करना हो उसका एकांत में आत्महितैपीनिजी-समासदों के साथ विचार कर लेना चाहिये ॥ ७० ॥ ज्वलननटीकी इस वाणीको सुनकर पृथ्वीनाथने जब मंत्रिसभाकी तरफ मुड़कर देखा तो सभा स्वामीके अभिप्रायको समझकर उठ चली । मनुष्योंको बुद्धिरूपी सम्पदाके प्राप्त करनेका फल यही है कि. मौके अनुसार वे वर्ताव करें ॥ ७१ ॥
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इस प्रकार अशग कवि कृत वर्धमान चरित्रमें अश्वमीव
'सभा क्षोभ नामक छडा सर्ग समाप्त हुआ।
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