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महावीर चरित्र । ... ... .. ....... .... ......... .......................
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११२ ] युद्धमें जिसने कभी देखा ही नहीं है वह महात्माओं के सामने अपने
अनुचित पौरुपकी प्रशंसा किस तरह करता है सो समझमें नहीं आता ।। ४४ ॥ उत्कृष्ट वीर वैरियोंके सामने युद्ध में ठहरना दूरी बात है । और अपने रनवासमें निसतरह मनमें आया उसी तरह. रणकी :: बात करना यह दूसरी बात है ।।११॥ जैसा मुंहसे कह सकते हैं.. वैसा ही महान् युद्धमें क्या पराकम भी कर सकते हैं ! मेव जैसा कानोंको अति भयंकर गर्नना है । ग वैसा ही वर्षता भी है। ॥४६॥ मदोन्मत हस्थियोंकी घटाओंसे ज्याप्त युद्धमें कौन किसका मित्र होता है । जगतमें यही बात प्रायः सबमें देखी गई हैं कि.. ".यही बड़ी बात है जो प्राण बच गये " ॥४७॥ नदी के किनारों पर उत्पन्न होनेवाले मो वृक्ष उद्धाता. धारण करते हैं-जमते नहीं. हैं-उनको क्या जलका वेग जड़मेंसे उखाड़ नहीं डालता है ? जरूर उखाड़ डालता है। किंतु नम जाता है इसीलिये वह .. बढ़ता है । सो यह ठीक ही है, क्योंकि खुशामद ही जीवनको रखती है ॥४८॥ अपने तेनसे निसने राजाओंके ऊपर शत्रुको और मित्रको भी रख दिया है तथा दोनोंको सजनताके.पदपर रखा है, उसकी बराबर और कोई भी उत्तम नहीं है ॥४९|| जब कभी .. मेघ बर्नमें निष्ठुरतासे गर्नने लगता है उस समय हिरणों के बच्चोंके : साथ साथ शत्रुओंकी बुद्धि क्या अब भी इस शंकासे त्रस्त नहीं हो जाती, और क्या वे मूच्छित नहीं हो जाते कि कहीं यह तो .. भश्वग्रीवके चापका-धनुषका शब्द है ॥५०॥ उसके शत्रुओंकी : ऐसी स्त्रियां कि जिनके पैर डामकी नोकोंके लग जानेसे अंगुलियों- . मेंसे बहते हुए खूनके महावरसे रंग गये हैं, और जिनकी आंखें बाप्प : . .(आंसू या पसीना) से भरी हुई है, जो भपसे व्याकुल होरहीं :