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१२४ ] महावीर चरित्र । अनुगमन कर उमक-भेदनेवाले के पीछे दौड़ते हुए. उसके कंटमें अगेकी तरफ सर्पके समान छौंले ऐसा काटा जो उम लिय.. दुःसह हो गया ॥ ३६ ॥ दुसरेके द्वारा अपने कौशनसे युद्धमः शीघ्रताके साथ हस्तगत की हुई दुष्ट कटार अपने ही स्वामीकी इस तरह मृत्युका कारण ३१ गई कि निमताह निर्धन मनुष्यको मुहिके बाहर निकल जानेव लो दुष्ट वेश्या दृसरेके हाथने पहुंचकर अपने पहले पोषाकी मृत्युन कारण हो जाती है ।। ३७ लोहकें .. त्राणोंसे निमक रागका बंधन कीलिा हो गया है-अर्थात् निकी रागोंमें लोहे वाण कीलोंकी तरह हुक गये हैं-घुस गये हैं एमा , कोई विवश हुआ बुड़सवार योद्धा उछलने हुए घोड़ेसे मी नहीं गिरा। जो परिष्कृत हैं उनकी स्थिरता चलायमान नहीं हो सकती ॥३८ : किसी २ ने दक्षिण बाहुदंडक कट जानेरर भी बांये हायसे ही तलवार लेकर सामने प्रहार करते हुए शत्रुको मार डाला।वित्तियोंके : 'पड़नेपर वाम (बांया भाग इलेपसे दूसरा अर्थ प्रतिकूल) भी उपयोग,
आ जाता है ॥ ३९ ॥ श्रेष्ठ तुरंगका अंग बाणोंसे घायल हो गया था तो भी उसने पहलेके न तो वेगको छोड़ा और न. शिक्षाको : छोड़ा तथा न अपने सवारकी विधेयता-कर्तव्यता ( जिस तरह .. -सबार चलाना चाहे उसी तरह वलना) को ही छोड़ा। ठीक ही हैं.' ज्जो उत्तम जातिमें उत्पन्न हुए हैं वे सुख और दुःख दोनों अवस्था में : समान रहते हैं.॥ ४० ॥ जिसके कंठमें बहुतसे लाल चमर.. हुए हैं ऐसे खाली पीउवाले घोड़ेने सामनेकी तरफ तेजीसे दौड़ते हुए हाथियोंकी घटाको तितर बितर कर दिया। अतएव वह केवल : नामसे ही नहीं; किंतु क्रियासे भी हरि-सिंह हो गया.॥ ११ ॥
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